झारखंड की खनिज संपदा पर भाजपा की गिद्ध दृष्टि

BULLETIN INDIA DESK ::
  • झारखंड की खनिज संपदा पर भाजपा की गिद्ध दृष्टि।
  • झारखंड में अपना सरकार बनाकर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना चाह रही है भाजपा।

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सत्या पॉल की कलम से ✒️ 

झारखंड खनिज संसाधनों की दृष्टि से एक समृद्ध राज्य है, जो कोयला, लोहा, यूरेनियम, बॉक्साइट और सोना जैसे महत्वपूर्ण खनिजों का घर है। इन संसाधनों के चलते झारखंड राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख योगदानकर्ता बन गया है, और इन खनिजों पर देश के विभिन्न उद्योगों की निर्भरता भी है। हालांकि, समय-समय पर आरोप लगते रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इन खनिज संसाधनों के दोहन के लिए झारखंड में अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत बनाने की कोशिश की है। विपक्षी दलों का दावा है कि भाजपा की नीति झारखंड के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की है।

झारखंड में खनिज संपदा का महत्व

झारखंड में भारत के कुल कोयला भंडार का 29%, लौह अयस्क का 20%, और तांबे का लगभग 25% पाया जाता है। इन खनिज संसाधनों के कारण ही झारखंड देश में खनन और खनिज आधारित उद्योगों का केंद्र बन गया है। यहां खनिज आधारित उद्योगों का विस्तार न केवल रोजगार के अवसर बढ़ाता है बल्कि राज्य को राजस्व में भी बढ़ोतरी करता है। लेकिन, यह स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब खनिज संसाधनों का अंधाधुंध दोहन होता है और इससे राज्य के पर्यावरण और स्थानीय जनसंख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भाजपा की नीतियों पर सवाल

विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा की नीति झारखंड के खनिज संसाधनों का व्यावसायिक दोहन कर राज्य की संपत्ति को पूंजीपतियों के हाथों सौंपने की है। भाजपा सरकार के कार्यकाल में झारखंड में कई खनन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिनमें स्थानीय समुदायों की सहमति और पर्यावरणीय मूल्यांकन की अनदेखी की गई। इससे स्थानीय जनसंख्या पर न केवल सामाजिक और आर्थिक असर पड़ा बल्कि उनकी आजीविका पर भी खतरा मंडराने लगा। 

भाजपा की आर्थिक नीतियों को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट है कि वह उद्योगपतियों और बड़े कारोबारियों को बढ़ावा देने में विश्वास करती है। देश में जब भाजपा सरकार सत्ता में आती है, तो वह निजीकरण की नीति पर जोर देती है, सरकार की इन नीतियों से अक्सर आम जनता, खासकर आदिवासी समुदाय, के अधिकारों और हितों की अनदेखी होती है।

पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव

खनिज संसाधनों के अत्यधिक दोहन से पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। झारखंड के वन क्षेत्रों में खनन गतिविधियों के चलते पेड़ों की कटाई, वन्य जीवों का विस्थापन और जल स्रोतों का प्रदूषण बढ़ा है। इससे न केवल राज्य के पर्यावरण पर प्रभाव पड़ा है, बल्कि उन समुदायों के लिए भी समस्या पैदा हुई है जो जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। खनिज आधारित उद्योगों के चलते होने वाला प्रदूषण झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में जल, मृदा, और वायु प्रदूषण की समस्या को और भी बढ़ाता है।

इसके अतिरिक्त, कई खनन परियोजनाओं के लिए आदिवासी इलाकों में भूमि अधिग्रहण किया गया, जिससे आदिवासी समुदायों का विस्थापन हुआ। भारत के संविधान के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों को विशेष अधिकार और संरक्षण प्राप्त है, परंतु भाजपा की नीतियों के कारण कई बार इन अधिकारों की अनदेखी की जाती है। स्थानीय समुदायों का आरोप है कि उनके साथ अन्याय हुआ है, और उन्हें खनन परियोजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता।

रोजगार के अवसर या शोषण?

भाजपा का तर्क है कि खनिज संसाधनों के विकास से राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। हालांकि, झारखंड में खनन उद्योगों में रोजगार के अवसर सीमित हैं और इनमें भी अस्थाई श्रमिकों का अधिक उपयोग किया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें इन उद्योगों में स्थाई रोजगार नहीं मिलता और उनकी मजदूरी भी बहुत कम होती है। इसके बजाय, बाहर से आए श्रमिकों को प्राथमिकता दी जाती है। इस प्रकार, स्थानीय जनसंख्या रोजगार की दृष्टि से उपेक्षित रह जाती है, और उनका शोषण किया जाता है।

वैकल्पिक विकास मॉडल की आवश्यकता

झारखंड की खनिज संपदा का संरक्षण और विकास राज्य के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, इसके लिए एक समन्वित और संवेदनशील विकास मॉडल की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय समुदायों और पर्यावरण का सम्मान किया जाए। भाजपा की नीतियों में स्थानीय जनसंख्या और पर्यावरणीय सुरक्षा के मुद्दों पर ध्यान न दिए जाने के कारण यह आवश्यक हो गया है कि झारखंड सरकार एक वैकल्पिक विकास मॉडल की दिशा में काम करे।

झारखंड की खनिज संपदा पर भाजपा की नीतियों के आरोप, राज्य के विकास और संरक्षण के बीच एक संतुलन बनाने की आवश्यकता को दर्शाते हैं। खनिज संसाधनों का जिम्मेदार और सतत विकास ही राज्य की संपन्नता का आधार बन सकता है। इसके लिए जरूरी है कि राज्य सरकार खनिज संसाधनों के दोहन में पारदर्शिता, स्थानीय जनसंख्या की सहमति, और पर्यावरणीय मानकों का पालन करे। भाजपा हो या अन्य राजनीतिक दल, झारखंड की संपत्ति का संरक्षण और इसके सही तरीके से उपयोग सुनिश्चित करना राज्य और देश दोनों के हित में है।

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