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वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार
झारखंड में दूसरे चरण का 20 नवंबर को होने वाला विधानसभा चुनाव का प्रचार थम चुका है। प्रत्याशी अब घर घर जाकर अपने अपने तरीके से मतदाताओं से मिलकर अपने पक्ष में वोट करने का आग्रह कर रहे हैं।
बता दें कि राज्य के 15 जिलों की 43 सीटों के लिए 13 नवंबर को होने वाला पहले चरण के मतदान में कुल 64.86 फीसद मतदान हुआ है। जिसमें राज्य का लोहरदगा में सर्वाधिक 73.21 प्रतिशत और हजारीबाग में सबसे कम 59.13 प्रतिशत मतदान हुआ है।
पहले चरण के मतदान में 17 सामान्य सीटों सहित 20 सीटें आदिवासी और 6 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं।
पहले चरण के इस मतदान में पूर्व सीएम चंपाई सोरेन और मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर सहित 683 उम्मीदवारों का जिन्न EVM में कैद है, जो 23 नवंबर को मतगणना के बाद बाहर निकलेगा।
इस चरण के प्रमुख उम्मीदवारों में पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, उनके पुत्र बाबूलाल सोरेन, झारखंड सरकार के छह मंत्रियों में डॉ. रामेश्वर उरांव, मिथिलेश ठाकुर, बन्ना गुप्ता, दीपक बिरुआ, बैद्यनाथ राम और रामदास सोरेन सहित पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा, ओडिशा के राज्यपाल व पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीपी सिंह, पूर्व मंत्री सरयू राय, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे पूर्व आईपीएस डॉ. अजय कुमार, राज्यसभा की सांसद डॉ. महुआ माजी, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, पूर्व मंत्री भानु प्रताप शाही और डॉ नीरा यादव आदि शामिल हैं
अगर दोनों चरण के मतदान के लिए झारखंड विधानसभा की 81 सीटों के उम्मीदवारों को हम गौर से देखें तो प्रायः सीटों पर कई ऐसे उम्मीदवार हैं जो महागठबंधन के उम्मीदवारों के वोट को ही नुकसान करते दिख रहे हैं। जहां तक भाजपा के वोट के नुकसान की बात करें तो उसके वोट में कोई सेंधमारी नहीं दिख रही है। यानी इससे साफ जाहिर है कि महागठबंधन के वोट को प्रायोजित व योजनागत तरीके से नुकसान पहुंचाया जा रहा है। भले ही भाजपा नेताओं द्वारा बार बार घुसपैठिए का राग आलाप कर, घुसपैठियों द्वारा आदिवासी लड़कियों से लव जिहाद कर शादी करके उनकी जमीन हड़पने, घुसपैठियों के कारण आदिवासियों की संख्या में गिरावट आने को लेकर जिस तरह से धार्मिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जाती रही है, बावजूद इसका आम मतदाता पर कोई प्रभाव नहीं देखा जा रहा है, खासकर आदिवासी मतदाताओं पर। शायद इसका आभास भाजपा हो चुका था, इसलिए जहां शैडो अकाउंट बनाकर झूठ का प्रसार किया जा रहा है वहीं क्षेत्रों में बोरो उम्मीदवार उतार कर महागठबंधन के वोट को नुकसान करने की कोशिश की जा रही है।
जिन क्षेत्रों में मुस्लिम वोट का प्रभाव ज्यादा है वहां कोई प्रभावकारी मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतरा है, जहां जिस जाति का वर्चस्व है और उसका झुकाव महागठबंधन की ओर है वहां उस जाति के उम्मीदवार खड़े हुए हैं। दूसरी जो सबसे बड़ी तस्वीर है वह यह है कि
ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं जिनकी आर्थिक स्थिति उस लायक नहीं कि वे चुनाव प्रचार के खर्चे भी उठा सकें, वे चुनाव प्रचार में हर स्तर पर काफी जोर लगाए हुए हैं।
कहना ना होगा कि जहां दूसरे प्रांतों में उम्मीदवारों की जाति और धर्म के आधार पर वोटिंग होती है। किसी किसी राज्य में दलित व गैर-दलित का भी प्रभाव होता है। जबकि झारखंड में जाति व धर्म सहित झारखंडी व गैर-झारखंडी (झारखंड के मूल वासी और बाहर से आकर बसे हुए लोग), आदिवासी व गैर-आदिवासी, विस्थापित व गैर विस्थापित आदि के नाम पर भी वोट मांगा जाता है।
इन्हीं तमाम कारणों के मद्देनजर ऐसे बोरो उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं जो केवल महागठबंधन के वोट को ही प्रभावित करेंगे।
देखना यह है कि ये उम्मीदवार अपने आका की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं? जितना भी खरा उतरे लेकिन कुछ हद तक तो नुकसान पहुंचाएंगे ही।