हरियाणा में बीजेपी ने रुमाल से कबूतर निकाला

BULLETIN INDIA DESK ::

बीजेपी की कानाफूसी और अफ़वाहों की मशीनरी ने जनहित से जुड़े मुद्दों को जातिवादी मुद्दों में बदल दिया

Bulletin India.

अरुण माहेश्वरी ✒️

बीजेपी ने हरियाणा के लोगों को सचमुच ऐसा चकमा दिया है कि वहां सब अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। हरियाणा के लोग न चाह कर भी एक निकम्मी और अन्यायपूर्ण, बलात्कारियों द्वारा समर्थित पार्टी की सरकार को स्वीकारने के लिए मजबूर किए गए हैं।

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इस चुनाव में खूब धूम थी कि किसान, जवान और पहलवान के मुद्दों ने हरियाणा के चुनाव को बदल डाला है। पर बीजेपी की कानाफूसी और अफ़वाहों की मशीनरी ने इन जनहित से जुड़े मुद्दों को ही जातिवादी मुद्दों में बदल दिया।

इस प्रकार, मोदी ने हरियाणा के लोगों से किसानों, मज़दूरों, नौजवानों और महिलाओं पर जुल्म का अधिकार भी हासिल कर लिया।

राहुल ने इस चुनाव को जातिवादी गोलबंदी से दूर रखने की भरसक कोशिश की। दलितों के प्रति न्याय की राजनीति के बावजूद उन्होंने सत्ता पर सवर्णों की दावेदारी से इंकार नहीं किया। जाट नेता हुड्डा को पूरा संरक्षण दिया।

पर उनकी यही पुरानी आज़माई हुई रणनीति गोदी मीडिया और आरएसएस की कानाफूसी के कारण बीजेपी की ग़ैर-जाट गोलबंदी के लिए रसद साबित हुई।

शैलजा बीजेपी में शामिल न होकर भी अपनी अनुपस्थिति से ही बीजेपी के लिए उपयोगी साबित हुईं। शैलजा की मैदान से दूरी से दलितों को ही कांग्रेस से दूर करने का भ्रम पैदा किया गया। कुल मिला कर राहुल की दलितों के पक्ष की राजनीति क्षतिग्रस्त हुई।

बीजेपी की चकमेबाजी की ताक़त ऐसी है कि उसकी शुद्ध ब्राह्मणवादी राजनीति उसकी सोशल इंजीनियरिंग में आड़े नहीं आती है, पर इसके विपरीत सामाजिक न्याय की राजनीति हर प्रकार की सोशल इंजीनियरिंग में विफल रहती है।

गोदी मीडिया, सोशल मीडिया के अलावा आरएसएस के घुटे हुए सांप्रदायिक अंकल के पास पंचतंत्र की कहानी वाले बेचारे ब्राह्मण की बकरी को कुत्ता बना कर उसे ठग लेने की अद्भुत शक्ति है।

आरएसएस-बीजेपी के ऐसे लगातार अभियानों ने आम भारतीय के दैनंदिन जीवन की नैतिकता को ही रुग्ण नैतिकता का रूप दे दिया है।

मोहब्बत, रोज़गार और न्याय की लड़ाई के आवेग से इसके उपचार की राहुल गांधी की ताबड़तोड़ कोशिशों के बावजूद आम आदमी को उसके मानसिक आनंद के जातिवादी जगत से निकालना संभव नहीं हो रहा है।

कांग्रेस ने कहा है कि वह इस परिणाम को मानने से इंकार करती है। उसने अपने इंकार के पीछे ईवीएम को एक प्रमुख कारण बताया है।

कांग्रेस की ईवीएम से शिकायत सौ प्रतिशत वाजिब है। मोदी निश्चित रूप से इन पर अपना तकनीकी नियंत्रण बनाये हुए हैं।

पर आरएसएस-मोदी ने झूठ और अफ़वाहों के बल पर अपनी जो सामाजिक जकड़बंदी क़ायम की है, दिन के उजाले में उन्होंने जिस प्रकार लोगों को ठगना शुरू किया है, उसे नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।

कांग्रेस ने अस्वीकार की जो आवाज़ उठाई है, उसे सिर्फ़ कांग्रेसी आवाज़ तक सीमित रखने के बजाय पूरे विपक्ष और आम जनता की आवाज़ में बदलने की कोशिश करनी होगी।

पूरे विपक्ष को बीजेपी-आरएसएस के संपूर्ण अस्वीकार के तर्क पर गोलबंद करना होगा। हर लड़ाई को विपक्ष की एकजुट लड़ाई के रूप में परिकल्पित करना होगा। तभी व्यापक जनता को इन विषयों पर सड़कों पर उतरने के लिए तैयार किया जा सकेगा।

झूठ, चकमा और धांधली आरएसएस-मोदी की राजनीति का प्रमुख ट्रिक है। इसे व्यापक राजनीतिक विरोध का निशाना बनाना होगा।

सड़क पर आरएसएस-मोदी का प्रतिरोध ही राजनीति की इस अंधी गली से निकलने का रास्ता तैयार कर सकता है।

अन्यथा इसी प्रकार आरएसएस की तरह की नाज़ीवादी पार्टी और उसका मोदी की तरह का तानाशाह नेता यूं ही बार-बार जनता को ठग कर उस पर हंसते रहेंगे, अपमानित करके आम लोगों के हौसलों को कमजोर करते रहेंगे।

(अरुण माहेश्वरी लेखक और स्तंभकार हैं।)

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