बुलेटिन इंडिया।

सत्या पॉल की कलम से ✒️ 

हिन्दी कविता की समकालीन धारा में जब हम नए और ताजे स्वरों की तलाश करते हैं, तब पार्वती तिर्की का नाम एक सशक्त उपस्थिति के रूप में उभरता है। झारखंड के कुडुख आदिवासी समुदाय से आने वाली पार्वती तिर्की को उनके पहले ही कविता-संग्रह ‘फिर उगना’ के लिए वर्ष 2025 का साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार प्रदान किया जाना इस बात का प्रमाण है कि अब साहित्य की दुनिया अधिक समावेशी और व्यापक हो रही है। यह महज एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि हिन्दी साहित्य में विविध संस्कृतियों और जीवन-प्रवृत्तियों के संगम की स्वीकृति का उत्सव है।

 

पार्वती तिर्की की कविताएँ उस जीवनदृष्टि से लैस हैं, जो भारतीय मुख्यधारा साहित्य में अब तक कम ही परिलक्षित होती रही है। उनकी रचनाओं में आदिवासी जीवन का जो यथार्थ उभरता है, वह न तो रोमांटिक है, न ही अजनबी। वह जमीनी है, आत्मीय है और गहराई से संवाद करने वाला है। ‘फिर उगना’ की कविताएँ हमें धरती, जंगल, चिड़ियाँ और चाँद-सितारों की उस दुनिया में ले जाती हैं जहाँ जीवन और प्रकृति का रिश्ता बेहद आत्मीय है। यह कविता संग्रह सिर्फ साहित्यिक नहीं, सांस्कृतिक और सामाजिक दस्तावेज़ भी है।

पार्वती तिर्की का जन्म 16 जनवरी 1994 को झारखंड के गुमला जिले में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, गुमला में हुई। इसके बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से हिन्दी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की और शोध का विषय भी उनके अपने समुदाय के जीवन-संघर्ष से जुड़ा रहा — ‘कुडुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष’। यह स्पष्ट करता है कि उनकी लेखनी जीवन से गहराई से जुड़ी हुई है। उन्होंने यह भी प्रमाणित किया है कि लोक और अकादमिकता, परंपरा और आधुनिकता, संघर्ष और सौंदर्य — सब एक साथ कविता में सांस ले सकते हैं।

 

राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी का यह कथन महत्वपूर्ण है कि कविता का भविष्य सिर्फ महानगरों या पूर्व प्रतिष्ठित नामों तक सीमित नहीं है। पार्वती तिर्की जैसे स्वरों को स्थान देकर हिन्दी साहित्य आज उस जड़ता को तोड़ रहा है, जो लंबे समय तक इसे घेरे रही थी। यह सिर्फ एक युवा लेखिका को दिया गया पुरस्कार नहीं है, यह एक सांस्कृतिक आवाज़ को मान्यता देने का संकेत है — और यही साहित्य की सबसे बड़ी भूमिका है।

 

इस अवसर पर यह भी ज़रूरी है कि साहित्यिक संस्थाएं और प्रकाशक नए स्वरों की खोज को गंभीरता से लें। आदिवासी, दलित, पिछड़े और वंचित समुदायों की जीवनानुभूतियाँ हिन्दी साहित्य को केवल विस्तार ही नहीं देतीं, उसे एक नई गहराई और ज़रूरतमंद मानवीय दृष्टि भी प्रदान करती हैं।

 

“साहित्य अकादेमी द्वारा पार्वती तिर्की को यह सम्मान देकर हिन्दी कविता की नई दिशा को मान्यता दी गई है। यह उपलब्धि न सिर्फ हिन्दी साहित्य के लिए गौरव की बात है, बल्कि हमारे समय में विविधता, अस्मिता और रचनात्मक जिजीविषा की जीत भी है, और झारखंड के लिए गर्व की बात।”

⇒ वर्तमान में पार्वती तिर्की, राम लखन सिंह यादव कॉलेज (राँची विश्वविद्यालय), हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।

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