• महापरिनिर्वाण दिवस विशेष रिपोर्ट

Bulletin India.

रांची। आज राष्ट्र संविधान निर्माता, समाज सुधारक एवं भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे के शिल्पकार डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर की पुण्यतिथि महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में नमन कर रहा है। विश्वभर में उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए जा रहे हैं। लेकिन इसी बीच यह प्रश्न भी उतना ही गंभीर है कि क्या डॉ. अम्बेडकर का वह सपना, जिसमें वे भारत को समता, न्याय और बराबरी पर आधारित राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे, आज भी अधूरा है?

 

समानता के लिए आजीवन संघर्ष, पर परिणाम अधूर

डॉ. अम्बेडकर 1924 से 1956 तक लगातार ऐसे भारत की परिकल्पना के लिए संघर्षरत रहे, जहाँ जाति-भेद, वर्गभेद और सामाजिक कुरीतियों का कोई स्थान न हो। उन्होंने संविधान में समानता के सिद्धांत को सर्वोच्च स्थान दिया और दलितों, महिलाओं तथा वंचित समाज को अधिकार दिलाने के लिए ठोस संवैधानिक व्यवस्था की।

लेकिन अनेक रिपोर्ट और आंकड़े बताते हैं कि भारतीय समाज में असमानता आज भी बदस्तूर कायम है, बल्कि कई मामलों में और गहरी हुई है।

 

भारत में असमानता के नए आयाम

वैश्विक असमानता रिपोर्टों के अनुसार भारत आज दुनिया के सबसे असमान देशों में शामिल है। यहाँ 1.1% सम्पत्ति पर पूरा देश जीवित है, वहीं 0.1% अमीरों के पास देश की 40% सम्पत्ति और 22% आय केंद्रित है।

2016 में सम्पत्ति कर हटने के बाद भारत में अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ी और आज देश में 166 अरबपति हैं, जिनमें सिर्फ एक दलित शामिल है। यह आंकड़े अम्बेडकर की समतामूलक समाज की अवधारणा पर प्रश्न खड़े करते हैं।

 

सरकारी नियुक्तियों में भारी असमानता

जस्टिस एच.एन. नागमोहन दास आयोग की रिपोर्ट बताती है कि केंद्र और राज्य सरकारों में 60 लाख से अधिक पद रिक्त हैं।सिर्फ केंद्र सरकार में 31 लाख पद खाली हैं।

यदि इन पदों पर भर्ती हो जाए तो अनुसूचित जाति—जनजाति समुदाय को लगभग 15 लाख नौकरियाँ मिल सकती हैं। लेकिन वास्तविकता इसके उलट है।

 

रिक्त पदों की स्थिति (केंद्र सरकार में):-

  • SC: ग्रुप A – 48.5%, ग्रुप B – 60%, ग्रुप C – 45.8%
  • ST: ग्रुप A – 53.2%, ग्रुप B – 60.7%, ग्रुप C – 53.3%
  • OBC:** ग्रुप A – 60.9%, ग्रुप B – 74.8%, ग्रुप C – 60.3%

शिक्षा, स्वास्थ्य, न्यायपालिका और सेना जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं में इन समुदायों की भागीदारी 1% से भी कम है।

 

सम्पत्ति का विभाजन – वर्गीय दूरी बढ़ी

  • सामान्य वर्ग के पास 89%,
  • SC/ST के पास 2.6%,
  • पिछड़े वर्गों के पास 9%,
  • मुस्लिम समुदाय के पास 8% सम्पत्ति है।

 

पिछले 10 वर्षों में SC/ST की सम्पत्ति में मात्र 2% वृद्धि, वहीं OBC की सम्पत्ति में 8.8% गिरावट दर्ज की गई।

 

दलितों पर अत्याचार और सामाजिक दूरी

पिछले चार वर्षों में दलितों पर अत्याचार के 6.5 लाख से अधिक मामले दर्ज हुए।

सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही लगभग 3.5 लाख मामले सामने आए।

जातिगत भेदभाव आज भी सामाजिक गतिशीलता को रोकता है। शिक्षा क्षेत्र में गिरावट और बेरोजगारी ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया है।

देश में लगभग 90,000 सरकारी स्कूल बंद हुए, जबकि निजी स्कूलों की संख्या बढ़ती गई।

परिणामस्वरूप हर चार में एक व्यक्ति निरक्षर हो रहा है।

 

लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भी प्रश्न

विदेशी और राष्ट्रीय संस्थान लगातार भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियों की ओर इशारा कर रहे हैं।

अमेरिकी अधिकारी डीन थॉम्पसन ने कहा कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों को लेकर गंभीर चिंताएँ हैं।

वहीं इलेक्टोरल बॉन्ड प्रकरण ने राजनीतिक वित्त पोषण की अपारदर्शिता और लोकतंत्र के कमजोर होने की आशंका को उजागर किया।

 

डॉ. अम्बेडकर का सपना—आज भी अधूरा

डॉ. अम्बेडकर ने चेताया था—“जाति व्यवस्था एक वर्ग के दूसरे वर्ग पर दमन को वैध ठहराती है।”

 

आज भी यह कथन उतना ही प्रासंगिक है।

आंकड़े बताते हैं कि भारत में सामाजिक व आर्थिक बराबरी अभी भी एक कठिन लक्ष्य है।

जहाँ वंचित वर्गों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और न्याय तक पहुँच सीमित है, वहीं संपत्ति कुछ हाथों में सिमटती जा रही है।

 

डॉ. अम्बेडकर के सपने—समानता, सामाजिक न्याय और मानव गरिमा—की पूर्ति अभी अधूरी है।

महापरिनिर्वाण दिवस पर यह अवसर सिर्फ श्रद्धांजलि का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी है कि क्या हम उनके बताए रास्ते पर आगे बढ़ पा रहे हैं या नहीं।

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