बुलेटिन इंडिया, संवाददाता।
धनबाद/बोकारो। झारखंड पुलिस विभाग में एक गंभीर फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है, जिससे न सिर्फ प्रशासनिक साख पर प्रश्नचिन्ह लग गया है, बल्कि आरक्षण प्रणाली की पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे हैं। राजगंज थाना प्रभारी अलीशा कुमारी का जाति प्रमाण पत्र जांच के बाद अवैध घोषित कर दिया गया है। जांच में यह बात सामने आई है कि अलीशा कुमारी ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खुद को झारखंड की स्थानीय निवासी और पिछड़ा वर्ग का सदस्य दिखाकर सरकारी नौकरी हासिल की।
⇒ नवादा की निवासी, पर दावा झारखंड का
प्राप्त जानकारी के अनुसार, अलीशा कुमारी मूलतः बिहार राज्य के नवादा जिले की निवासी हैं। उनके पिता भुवनेश्वर प्रसाद अग्रवाल करीब 30 वर्ष पूर्व रोजगार की तलाश में झारखंड के गिरिडीह जिले के डुमरी क्षेत्र में आए थे, लेकिन वहां स्थायी रूप से नहीं बसे। बताया गया कि उन्होंने डुमरी में एक मकान बनवाया, जिसे किराये पर चढ़ा दिया और स्वयं नवादा में ही निवासरत रहे।
⇒ बोकारो निवासी की शिकायत से खुला मामला
यह मामला बोकारो जिले के निवासी प्रदीप कुमार रे की लिखित शिकायत के बाद प्रकाश में आया। प्रदीप ने वर्ष 2023 में अलीशा कुमारी के जाति प्रमाण पत्र की वैधता पर प्रश्न उठाते हुए इसे जाति छानबीन समिति के समक्ष चुनौती दी थी। समिति द्वारा की गई विस्तृत जांच में पाया गया कि अलीशा ने झारसेवा पोर्टल पर फर्जी आधार पर स्थानीय निवासी होने का दावा करते हुए प्रमाण पत्र बनवाया था।
⇒ फर्जी दस्तावेजों का सहारा
जाति प्रमाण पत्र के लिए अलीशा द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों में जमीन की रजिस्ट्री, लगान रसीद, स्वघोषित शपथ पत्र, ग्रामसभा की अनुशंसा और पंचायत का प्रमाण पत्र शामिल थे। हालांकि, समिति की जांच में यह स्पष्ट हुआ कि ये सभी दस्तावेज स्थायी निवास की श्रेणी में नहीं आते। साथ ही वह पिछड़ा वर्ग संघ की वैध सदस्यता का कोई ठोस प्रमाण भी प्रस्तुत नहीं कर सकीं।
⇒ प्रमाण पत्र रद्द, विभाग सकते में
समिति ने समस्त तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर 16 मार्च 2017 को निर्गत जाति प्रमाण पत्र संख्या JHCC/2017/229784 को रद्द कर दिया है। इस निर्णय के बाद पुलिस विभाग और प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मच गया है। अब यह प्रश्न उठने लगे हैं कि एक गैर-स्थानीय महिला को किस आधार पर आरक्षण श्रेणी में सरकारी सेवा मिली और चयन प्रक्रिया में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई।
⇒ मीडिया के सवाल पर टालमटोल
जब मीडिया प्रतिनिधियों ने इस प्रकरण में अलीशा कुमारी से संपर्क किया, तो उन्होंने बेहद टालमटोल भरा जवाब दिया। उन्होंने कहा, *“ऐसा कुछ नहीं है, अगर आपके पास कुछ सबूत है तो दिखाइए।”* उनके इस जवाब ने मामले को और पेचीदा बना दिया है।
⇒ अगला कदम क्या होगा?
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राज्य सरकार और पुलिस मुख्यालय इस मामले में क्या कार्रवाई करते हैं। क्या अलीशा कुमारी की सेवा समाप्त की जाएगी? क्या उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलेगा?
इस घटना ने सरकारी तंत्र की जाँच व्यवस्था, आरक्षण नीति और नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रशासनिक जवाबदेही की दृष्टि से यह एक अहम परीक्षण बन गया है।
“यह प्रकरण दर्शाता है कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी पद हासिल करना न केवल कानूनी व्यवस्था के साथ धोखा है, बल्कि यह उन पात्र अभ्यर्थियों के अधिकारों का भी हनन है जो नियमों के दायरे में रहकर प्रयास करते हैं।”