रिपोर्ट : सिद्धार्थ पांडेय, चाईबासा।
सेल की गुवा खदान के रानी चुआं डम्प एरिया से लगातार बहकर आ रही लौह चूर्ण, लाल मिट्टी, और मुरुम सारंडा जंगल और प्राकृतिक जल स्रोतों को नष्ट कर रही है। इस कारण न केवल सारंडा का पर्यावरण क्षतिग्रस्त हो रहा है, बल्कि ऐतिहासिक कोयना नदी और इसके किनारे बसे दर्जनों गांवों के ग्रामीणों का जीवन भी खतरे में पड़ गया है।
गुवा प्रबंधन कई वर्षों से अपने खदान के वेस्ट डम्प को रानी चुआं के जंगल में फेंक रहा है, जिससे क्षेत्र के हजारों पेड़ नष्ट हो चुके हैं। तीन साल पहले जब इस डम्प से भारी मात्रा में लाल मिट्टी और मुरुम बहकर जोजोगुटु, राजाबेड़ा, बाईहातु, और जामकुंडिया जैसे गांवों और कोयना नदी तक पहुंची, तो सैकड़ों ग्रामीणों ने विरोध स्वरूप रानी चुआं पहाड़ी की ओर कूच किया और गुवा खदान पहुंचे। इस घटना के बाद गुवा प्रबंधन में हड़कंप मच गया, और अधिकारियों ने गांव आकर ग्रामीणों से बातचीत की। समस्या के स्थायी समाधान के लिए रानी चुआं डम्प क्षेत्र में लगभग 3 करोड़ रुपये की लागत से आरसीसी गार्डवाल का निर्माण कराने की घोषणा की गई थी।
हालांकि, आज तक इस डम्प क्षेत्र में आरसीसी गार्डवाल का निर्माण नहीं हुआ है। ग्रामीणों के अनुसार, गुवा प्रबंधन के अधिकारी हर साल जंगल के पत्थरों से कच्चे गार्डवाल बनाकर लाखों रुपये की अवैध कमाई कर रहे हैं, जबकि वन, पर्यावरण, और ग्रामीणों की कृषि भूमि को बर्बाद कर रहे हैं।
इस मामले में सारंडा पीढ़ के मानकी लागुड़ा देवगम और अन्य ग्रामीण नेता, जैसे राजाबेड़ा के मुंडा जामदेव चाम्पिया और जामकुंडिया के मुंडा कुशु देवगम ने दो बार हुई जांच की बात कही। पहली जांच वन विभाग गुवा और मनोहरपुर के तत्कालीन रेंजर द्वारा की गई थी, जबकि दूसरी जांच में जगन्नाथपुर के तत्कालीन एसडीओ, किरीबुरु के एसडीपीओ, और अन्य अधिकारियों की संयुक्त टीम ने गांवों में जाकर नुकसान का आकलन किया था। इन जांचों के बावजूद आज तक ग्रामीणों को कोई मुआवजा नहीं मिला है।
अब ग्रामीणों ने तय किया है कि वे सेल और टाटा स्टील के खिलाफ सारे सबूत जुटाकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में मामला दर्ज करेंगे और न्याय मिलने तक संघर्ष करेंगे। इसके लिए वे दिल्ली के पर्यावरण विशेषज्ञों की भी मदद ले रहे हैं। लागुड़ा देवगम ने कहा कि गुवा प्रबंधन की नीतियों के कारण जंगल और पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है, जबकि ग्रामीणों को केवल बीमारियाँ मिल रही हैं और नौकरी का लाभ बाहरी लोगों को दिया जा रहा है। ग्रामीण इस दोहरी नीति को अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे।