महिला दिवस के बहाने झारखंड की महिलाओं ने आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक नेतृत्व के अधिकार को लेकर क्रांति का फूंका बिगुल 

बुलेटिन इंडिया।

विशद कुमार ✒️

सामाज, अर्थ व राजनीति में समानता की हकदारी को लेकर झारखंड के कई महिला संगठनों में आदिवासी विमेंस नेटवर्क, एडवा, एपवा, नारी शक्ति क्लब, सहित सामाजिक संगठन झारखंड जनाधिकार महासभा और राज्य के अनेक संगठनों के प्रतिनिधियों ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च को रांची के पुरुलिया रोड स्थित एसडीसी (Social Development Centre) में एक सम्मेलन का आयोजन किया।

आयोजित सम्मेलन का मुख्य विषय ही “समाज, अर्थ और राजनीति में समानता के हक की दावेदारी” था। सम्मेलन में राज्य के विभिन्न जिलों से विभिन्न संगठनों की 200 महिला प्रतिनिधियों ने भाग लिया और आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक नेतृत्व के अधिकार को लेकर क्रांति का बिगुल फूंका।

सम्मेलन की शुरुआत में लीना और रिया तुलिका पिंगुआ ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास प्रकाश डालते हुए बताया कि 100 साल पहले एक ओर अमरीका और यूरोप में महिलाएं वोट के सार्वजनिक अधिकार और बराबर रोजगार के अधिकार के लिए संघर्ष कर रही थी। वहीं दूसरी ओर रूस में विश्व युद्ध, भूख और वहां के राजा (ज़ार) के फासीवादी तानाशाही के विरुद्ध मेहनतकश महिलाओं ने 8 मार्च 1917 को क्रांति का बिगुल फूंका था। इन सभी संघर्षों के कारण 8 मार्च पूरी दुनिया के लिए महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक बन गया।

अवसर पर महिला कवि जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि समाज, धर्म और पुरुष महिलाओं को घेर के रखते हैं। पितृसत्ता को खत्म करने के लिए महिलाओं को इन सब पर सवाल करना होगा।

सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए शोधकर्ता नसरीन आलम ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 32% महिलाओं ने घरेलू हिंसा से पीड़ित रही हैं।

Advertisement

एकल नारी सशक्ति संगठन की कौशल्या देवी ने कहा कि समाज में एकल महिलाओं को बहुत तरह के शोषण का सामना करना पड़ता है जिसके विरुद्ध उनका संगठन लगातार संघर्ष कर रहा है।

एपवा की नंदिता भट्टाचार्य ने महिला अधिकारों पर मंडरा रहे गहरे संकट को याद दिलाया और कहा कि आरएसएस और भाजपा देश को संवैधानिक मूल्यों के विपरीत हिन्दू राष्ट्र और कॉर्पोरेट राज बनाने पर तुले हैं। जहां एक ओर हिन्दू राष्ट्र में महिलाओं की ज़िन्दगी हिंदुत्व और वर्ण व्यवस्था पर आधारित होती जा रही है, उनके बोलने और सोचने की आज़ादी पर अंकुश बढ़ते जा रहे हैं। वहीं, कॉर्पोरेट पूंजीवादी राज में महिलाएं अपने जल, जंगल, ज़मीन से वंचित शोषित मज़दूर बनी रहेंगी।

Advertisement

एडवा की वीना लिंडा ने कहा कि केंद्र सरकार महिलाओं को संसद व विधान सभा में आरक्षण देने का ढोंग कर रही है। इसको लागू करवाने के लिए महिलाओं को ही आंदोलन करना होगा।

आदिवासी नेत्री दयामनी बरला ने कहा कि झारखंड राज्य बनाने में महिलाओं ने व्यापक संघर्ष किया था, लेकिन राज्य बनने के बाद पुरुष यह भूल गए।

उन्होंने कहा कि राजनीति में महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक महिला को विधायक के लिए टिकट मिलना या जनता का समर्थन मिलना, यह एक बड़ी चुनौती है। आज झारखंड में केवल 10-15% महिला विधायक हैं जबकि कम-से-कम 50% सीटों पर महिलाओं का अधिकार होना चाहिए।

अवसर पर कुमुद ने कहा कि महिलाओं के संघर्षों से समाज, धर्म, राजनीति और आर्थिक व्यवस्था में पितृसत्ता को लगातार चुनौती मिली है। अनेक अधिकार भी जीते गए हैं।

जन संघर्ष समिति की एमेलिया ने कहा कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रोकने में महिलाओं की अहम भूमिका थी।

कांग्रेस नेत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि राजनीति में संघर्षशील महिलाओं की आवाज़ों को अक्सर दबा दिया जाता है। आने वाले दिनों में महिलाओं को आपसी प्रतिस्पर्धा में समय बर्बाद न करके संगठित होकर पितृसत्ता और अर्थ, समाज और राजनीति में बराबरी के अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।

वहीं पूर्व व्याख्याता और झामुमो से जुड़ी रजनी मुर्मू ने कहा कि जमीन पर अधिकार न होना आदिवासी महिलाओं का गैर-आदिवासियों से अक्सर पिछड़ जाने का एक बड़ा कारण है।

Advertisement

कुछ महिलाओं ने कहा कि धर्म ने तो महिलाओं के निजी जीवन और सामाजिक स्थिति को सीमित दायरों में बांध के रखा है। धार्मिक व्यवस्था में भी महिलाओं के लिए नेतृत्व में आना एक बहुत बड़ी चुनौती है। हर समाज में सत्ता पुरुषों के पास ही रहता है।

 

अनेक महिलाओं ने कहा कि गैर-बराबरी का एक मुख्य कारण है संसाधनों व अर्थ पर नियंत्रण का न होना। आर्थिक रूप से महिलाओं के श्रम का घर में और घर के बाहर (जैसे कंपनी, बाज़ार, खेती-मज़दूरी आदि) व्यापक शोषण होता है।

 

सम्मेलन में आई महिलाओं ने इन चुनौतियों से लड़ने के अनुभव को साझा किया।

अनेक वक्ताओं ने कहा कि आज भी महिला को सामाजिक स्तर पर किसी पुरुष के परिप्रेक्ष्य में महज़ मां, बहन या पत्नी के रूप में ही देखा जाता है। महिलाओं को अधिकारों से वंचित रखने में पुरुष, परिवार और समाज की अहम भूमिका होती है।

सम्मेलन में आई महिलाओं ने अपने निजी जीवन, परिवार व समाज में बराबरी के अधिकार के लिए लगातार संघर्ष को साझा किया।

सम्मेलन के अंत में सभी प्रतिभागियों ने निम्न मांगों के साथ संकल्प पारित किया-

1) महिलाओं के लिए हर स्तर के नौकरी में कम-से-कम 50% आरक्षण लागू किया जाए। लैंगिक समता के लिए विशेष लैंगिक नीति बनाई जाए और उसे हर स्तर पर लागू किया जाए। महिला आयोग पुनर्जीवित किया जाए। समलैंगिक समेत सभी ट्रांसजेंडर व क्वीयर व्यक्तियों का हर मौलिक अधिकार व सरकारी योजनाओं में बराबरी सुनिश्चित हो।

 

2) हिंसा से प्रभावित राज्य की सभी महिलाओं के लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर (OSCC) सक्रिय किया जाये। मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए सम्पूर्ण पुनर्वास व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

 

3) राज्य में कम से कम 50% महिला विधायक हों। राजनैतिक पार्टियों के हर स्तर की समितियों और नेतृत्व में कम से कम 50% महिलाएं हों। सामाजिक व गैर पार्टी संगठनों से भी अपील हैं कि नेतृत्व में महिलाओं का अधिकार सुनिश्चित किया जाये।

4) महिलाओं को सम्मानजनक मजदूरी एवं कार्यक्षेत्र में बराबरी का अधिकार सुनिश्चित हो। असंगठित क्षेत्र की महिलाओं के सम्पूर्ण मातृत्व अधिकार – मातृत्व अवकाश, सम्मानजनक मातृत्व लाभ, कार्यस्थल पर पालना की व्यवस्था सुनिश्चित हो।

5) परिवार और समाज से भी अपील है की लड़कियों को बिना किसी भेदभाव के हर क्षेत्रों में समान अवसर और बेहतर सुविधाएं दिया जाए। खासकर शिक्षा , स्वास्थ्य, पोषण, खेलकूद और रोजगार के क्षेत्रों में।

सम्मेलन का संचालन एलिना होरो, लीना और रिया तुलिका पिंगुआ ने किया।

सम्मेलन को गीता तिर्की, कौशल्या देवी, किरण, कल्याणी, कुमुद, मीणा, नसरीन जमाल, रेशमा, सेलिना लकड़ा, सुनीता लकड़ा, शशि रीता, सुहासिनी महली, स्वाति शबनम, तारामणि साहू, वीणा लिंडा वगैरह ने भी संबोधित किया।

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *