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विशद कुमार की रिपोर्ट।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख़ों के एलान के बाद उम्मीदवारी को लेकर घमासान मचा हुआ है, इस घमासान के बीच मोतिहारी के कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र अभी काफी सुर्ख़ियों में है। क्योंकि यहां प्रशांत किशोर का जनसुराज के भीतर टिकट बंटवारे को लेकर जो असंतोष खुलकर सामने आया है काफी रोचक ही नहीं बल्कि पीके के मकसद का भी पर्दाफाश कर दिया है।

 

हुआ यह है कि पिछले दो साल से प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज के लिए सक्रिय रहे सुबोध तिवारी ने टिकट न मिलने के बाद न केवल खुला विरोध दर्ज किया है, बल्कि निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है। ऐसे में तिवारी का विरोध अब जनसुराज के अंदर बढ़ते असंतोष का प्रतीक बनता जा रहा है।

 

स्थिति यह हो गई है कि तिवारी के समर्थकों द्वारा जनसुराज के पोस्टर-बैनर फाड़े और जलाये जा रहे हैं।

बताते चलें कि कुछ दिन पहले पटना से सुबोध तिवारी का फोन उनके समर्थकों के पास यह बताने के लिए आया था कि मेरा टिकट लगभग फाइनल है। लेकिन ऐन वक्त उन्हें टिकट नहीं दिया गया जिसके कारण क्षेत्र में तिवारी समर्थकों में नाराज़गी बढ़ गई।

सुबोध तिवारी ने बताया कि इसी भरोसे पर मैंने 50 लाख रुपये की प्रचार सामग्री छपवाई थी। उनके अनुसार उन्होंने 500 चाबी रिंग, एक लाख पेन, सैकड़ों कॉपियां, स्टीकर और हजारों जनसुराज टी-शर्ट बनवाईं ताकि पूरे विधानसभा क्षेत्र को अभियान से जोड़ा जा सके। लेकिन अंतिम समय में टिकट कट जाने से उनके और उनके कार्यकर्ताओं में गहरी निराशा फैल गई।

 

बता दें कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र में ही यह बगावत नहीं हुई है बल्कि जनसुराज की दूसरी सूची जारी होते ही राज्य के अन्य हिस्सों समस्तीपुर, नालंदा, शिवाजीनगर और मुजफ्फरपुर में भी विरोध-प्रदर्शन और तोड़फोड़ की घटनाएं हुई हैं। कुछ कार्यकर्ताओं ने टिकट बंटवारे में पैसों की मांग जैसे गंभीर आरोप भी लगाए हैं, हालांकि पैसों की मांग के दावों की स्वतंत्र पुष्टि अभी नहीं हुई है।

 

बताया जाता है कि मौजूदा हालात में टिकट बंटवारे की पारदर्शिता और आंतरिक अनुशासन जनसुराज के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं। कल्याणपुर का यह घटनाक्रम जनसुराज के संगठनात्मक ढांचे और सामूहिक निर्णय की प्रक्रिया पर गहरे सवाल खड़े करता है। सुबोध तिवारी का यह कदम न केवल स्थानीय स्तर पर समीकरण बदल सकता है, बल्कि जनसुराज की चुनावी रणनीति के लिए भी सिरदर्द साबित हो सकता है।

जनसुराज में टिकट बंटवारे को लेकर कई चर्चाएं बिहार में तैरने लगी है। जानकारों की माने तो जिससे यह साफ हो चला है कि कैसे प्रशांत किशोर ने बड़ी बारीकी से भाजपा को सत्ता दिलाने की बिसात बिछाई है।

 

तीसरे विकल्प के रूप में जनसुराज को सामने लाया गया और इसी उम्मीद से लोग जनसुराज से जुड़े, लेकिन उन्हें मात्र इस कारण टिकट न दिया गया कि उनके मैदान में उतरने से भाजपा का प्रत्याशी हार जायेगा, उसमें से एक हैं सुबोध तिवारी।

 

कल्याणपुर सीट से सुबोध तिवारी को जनसुराज ने टिकट नहीं दिया। तो सुबोध ने सारे भेद उजागर कर दिये।

 

सुबोध तिवारी ने कहा कि उन्हें प्रशांत किशोर ने ऑन रिकार्ड कहा कि “आप भूमिहार हैं। कल्याणपुर से (भाजपा का) विरोधी प्रत्याशी भी भूमिहार है। आप मत लड़िये, हार जाइयेगा।”

 

सुबोध कल्याणपुर की सियासी रग-रग के जानकार हैं। एक वायरल विडियो में वह कह रहे हैं कि कल्याणपुर से एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया गया है जो पांच हजार से ज्यादा वोट नहीं ला सकता। वह सीधा राजद का वोट काटेगा। इससे साफ संकेत है कि भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए ये सारा खेल पीके ने रचा है।

 

प्रशांत किशोर की इस हरकत को भांप लेने के बाद सुबोध तिवारी ने साफ शब्दों में कहा है कि जब कल्याणपुर में दो भूमिहार आपस में नहीं लड़ सकते तो हरसिद्धि विधानसभा में कैसे राजद के राजेंद्र राम के खिलाफ जनसुराज ने अवधेश राम को खड़ा कर दिया गया है ? क्या इसलिए कि एक जाति के दो उम्मीदवार लड़ जायें और वहां से भाजपा के कृष्णंद पासवान चुनाव जीत जायें।

 

सुबोध तिवारी के इस गंभीर सवाल का जवाब अभी तक प्रशांत किशोर ने नहीं दिया है। सुबोध ने चुनौती दी है कि अगर मेरे तर्क गलत हों तो मुझे जूते से मारिये, नहीं तो पीके इसका जवाब दें।

 

अपने तर्क को और मजबूती देते हुए सुबोध तिवारी ने सवाल किया कि जब दो भूमिहार आपस में नहीं लड़ सकते तो हरसिद्धि में कैसे दो रामजी को आपस में लड़ाया जा रहा है? यह सिर्फ इसलिए कि जनसुराज के अवधेश राम, राजद के राजेंद्र राम के वोट काट लें और भाजपा का प्रत्याशी जीत जाये।

 

प्रशांत किशोर के निशाने पर इस तरह की 70-90 सीटें हैं जहां सीधा भाजपा को लाभ पहुंचाने का लक्ष्य है। अगर पीके इस मिशन में कामयाब हो गये तो भाजपा को सिर्फ चिराग और जनसुराज की मदद से सत्ता मिल जायेगी।

 

अन्य पक्ष बताते हैं कि – पीके ने खुद स्वीकार किया है कि वह निजी फंड से 200 करोड़ रुपये चुनाव में खर्च कर रहे हैं। पर केंद्र की सीबीआई, ईडी इस पर चुप है। अगर कोई और व्यक्ति ऐसी घोषणा करता तो आज जेल जा चुका होता।

दूसरी तरफ कुछ लोगों का तर्क है कि भाजपा के संजय जायसवाल, दिलीप जायसवाल, सम्राट चौधरी पर जितने गंभीर आरोप लगाये उससे उन्हें भाजपा का एजेंट कैसे कहा जा सकता है? इसका सीधा जवाब है कि शतरंज के खेल में जीत हासिल करने के लिए प्यादों की कुर्बानी दी जाती है भाजपा पर हमला करके प्रशांत किशोर मुसलमानों का दिल जीतना चाहते हैं। चूंकि एक सर्वे में पीके को पता चल चुका है कि मुसलमान उन्हें वोट करने से इनकार कर रहे हैं। यह मुसलमानों को गफलत में रखने की चाल है।

 

वहीं प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति का दूसरा निशान नीतीश कुमार पर साधा है। वह 33 प्रतिशत टिकट अतिपिछड़ों को इसलिए दे चुके हैं कि वे नीतीश कुमार के ईबीसी किला को ध्वस्त कर दें। जबकि भाजपा ने इस समाज को मात्र 8 प्रतिशत टिकट दिया है जबकि उनकी आबादी 36 प्रतिशत है।

 

जानकारों का मानना है कि पीके का पूरा निशाना सिर्फ दो समुदायों के वोट को बरबाद करने का है। पहला मुसलमान और दूसरा अतिपिछड़ा वर्ग।

 

बता दें कि प्रदेश में दो चरणों में चुनाव होगा। 6 और 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और 14 नवंबर को नतीजों का एलान होगा।

 

इसके अलावा उम्मीदवारों के लिए पहले चरण का नामांकन दाखिल करने की आख़िरी तारीख़ 17 अक्तूबर है और दूसरे चरण के लिए नामांकन दाखिल करने की आख़िरी तारीख़ 20 अक्तूबर है।

 

पहले चरण के लिए नामांकन वापिस लेने की आख़िरी तारीख़ 20 अक्तूबर और दूसरे चरण के लिए नामांकन वापिस लेने की आख़िरी तारीख़ 23 अक्तूबर है।

 

चुनाव आयोग के अनुसार बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कुल मतदाता लगभग 7.43 करोड़ हैं। इनमें करीब 3.92 करोड़ पुरुष, 3.50 करोड़ महिलाएं और 1,725 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। इनमें 14 लाख से ज़्यादा ऐसे मतदाता हैं जो पहली बार वोट डालेंगे।

 

आयोग के अनुसार बिहार में कुल 90,712 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। इनमें से 76,801 ग्रामीण इलाकों में और 13,911 शहरी क्षेत्रों में हैं। हर मतदान केंद्र पर औसतन 818 मतदाता होंगे। सभी केंद्रों पर 100% वेबकास्टिंग की व्यवस्था की गई है। इनमें 1,350 मॉडल मतदान केंद्र, 1,044 महिलाओं द्वारा संचालित केंद्र, 292 दिव्यांग मतदाताओं के प्रबंधन वाले केंद्र और 38 युवाओं द्वारा संचालित केंद्र शामिल हैं।

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