सत्या पॉल की कलम से।
भारत में बलात्कार की घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी और सरकार का “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा बन चुका है। इस समस्या की गहराई और व्यापकता, सामाजिक मूल्यों, प्रशासनिक लापरवाही और कानून व्यवस्था की खामियों के जटिल जाल से उपजती है।
बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि
बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बलात्कार के मामले निरंतर बढ़ रहे हैं। यह मात्र संख्यात्मक वृद्धि नहीं है, बल्कि इसके पीछे की सामाजिक-आर्थिक संरचनाएं, लैंगिक असमानताएं, और कमजोर कानून व्यवस्था भी जिम्मेदार हैं।
ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाएं और बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं। यह तथ्य बताता है कि समाज की मानसिकता में कहीं न कहीं विकृति है, जो महिलाओं को उपभोग की वस्तु के रूप में देखती है। इसी मानसिकता के चलते महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं, और समाज का एक बड़ा हिस्सा इन अपराधों को या तो नजरअंदाज कर रहा है या उन्हें सामान्य मानने लगा है।
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान की चुनौतियां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2015 में शुरू किया गया “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसका उद्देश्य महिलाओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बदलाव लाना, लिंगानुपात में सुधार करना और बालिकाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करना था। लेकिन इस अभियान की सफलता को लेकर सवाल उठ रहे हैं, खासकर बलात्कार और अन्य लैंगिक अपराधों की बढ़ती घटनाओं के संदर्भ में।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह अभियान ज़्यादातर प्रतीकात्मकता तक सीमित रह गया है। अभियान के अंतर्गत बड़े पैमाने पर विज्ञापन और प्रचार-प्रसार तो हुआ, लेकिन जमीनी स्तर पर इसके प्रभावी क्रियान्वयन में कमी रही। उदाहरण के लिए, कई राज्यों में इस अभियान के तहत आवंटित बजट का समुचित उपयोग नहीं हो पाया, और कई जिलों में यह अभियान महज दिखावा बनकर रह गया।
सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण
भारतीय समाज में लैंगिक असमानता गहरे तक जमी हुई है। पितृसत्तात्मक सोच, महिलाओं की स्थिति को कमजोर करती है और उनके खिलाफ हो रहे अपराधों को बढ़ावा देती है। जब तक समाज में यह धारणा रहेगी कि महिलाएं पुरुषों से कमतर हैं, तब तक महिलाओं के खिलाफ अपराध रुकना मुश्किल है।
इसके अलावा, प्रशासनिक और कानूनी ढांचे में भी कई खामियां हैं। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामलों में पुलिस की निष्क्रियता, आरोपियों को सजा दिलाने में होने वाली देरी, और पीड़िताओं को न्याय दिलाने में होने वाली दिक्कतें भी इस समस्या को और बढ़ा देती हैं। कई मामलों में, पुलिस या प्रशासन का रवैया पीड़िता को ही दोषी ठहराने वाला होता है, जो कि समस्या का समाधान नहीं, बल्कि उसे और गंभीर बनाता है।
समाधान की दिशा में कदम
बलात्कार और अन्य लैंगिक अपराधों को रोकने के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें कानूनी सुधार, प्रशासनिक दक्षता, और सामाजिक जागरूकता अभियान का समन्वय होना चाहिए।
1. कानूनी सुधार :- बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराधों के मामलों में कानूनी प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाना जरूरी है। दोषियों को त्वरित और कठोर सजा देने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि समाज में यह संदेश जाए कि ऐसे अपराधों के लिए कोई जगह नहीं है।
2. सामाजिक जागरूकता :- समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण बदलने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसमें स्कूलों, कॉलेजों, और सामुदायिक केंद्रों के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं, जहां लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा के बारे में शिक्षा दी जाए।
3. शिक्षा और सशक्तिकरण :- महिलाओं और बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी शिक्षा और सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही, पुरुषों और लड़कों को भी महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता के मूल्यों को समझाने की दिशा में कार्य होना चाहिए।
4. प्रशासनिक सुधार :- पुलिस और प्रशासन को अधिक संवेदनशील और जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है। उन्हें महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की जांच और निष्पादन में तत्परता दिखानी चाहिए, ताकि पीड़िताओं को न्याय मिल सके।
भारत में बढ़ती बलात्कार की घटनाएं और “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान का सीमित प्रभाव हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि समस्या की जड़ें कितनी गहरी हैं। इस समस्या से निपटने के लिए केवल सरकारी अभियान ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग को आगे आकर जिम्मेदारी लेनी होगी। तभी हम अपने देश को महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान बना सकेंगे।