बुलेटिन इंडिया, संवाददाता।
रांची। आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष सह पूर्व विधायक प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने झारखंड सरकार से मांग की है कि वह तीन वर्ष पूर्व की गई घोषणा को पूरा करते हुए राज्य के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के युवाओं को सरकारी टेंडरों में प्राथमिकता देने की नीति को तत्काल लागू करे।
श्री नायक ने इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईमेल के माध्यम से पत्र लिखा और आदिवासी मूलवासी समाज की भावनाओं से उन्हें अवगत कराया। उन्होंने कहा कि यह घोषणा राज्य के पथ निर्माण विभाग से जुड़ी थी, जिसमें ढाई करोड़ रुपये तक के प्रोजेक्ट्स के टेंडरों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के युवाओं को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी।
ओडिशा की तर्ज पर नीति लागू करने की मांग
श्री नायक ने कहा कि ओडिशा में पहले से ही यह व्यवस्था लागू है, और झारखंड में भी इसे जल्द से जल्द लागू करना चाहिए। इससे न केवल आदिवासी और मूलवासी समाज के युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सकेगा, बल्कि उन्हें राज्य के विकास कार्यों में सक्रिय भागीदारी का अवसर भी मिलेगा।
उन्होंने कहा कि यह नीति सिर्फ पथ निर्माण विभाग तक सीमित न रहे, बल्कि भवन निर्माण, ग्रामीण कार्य विभाग, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, और जल संसाधन विभाग के टेंडरों में भी इसे लागू किया जाए।
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सरकार पर वादा निभाने का दबाव
श्री नायक ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद इस प्रस्ताव को पथ निर्माण विभाग के मंत्री रहते हुए सहमति दी थी। हालांकि, तीन साल बीतने के बावजूद इसे अब तक कैबिनेट में लाकर लागू नहीं किया गया। उन्होंने इसे आदिवासी मूलवासी समाज के साथ विश्वासघात बताया और चेतावनी दी कि अगर सरकार इस नीति को जल्द लागू नहीं करती, तो आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच संघर्ष और आंदोलन तेज करेगा।
जनभागीदारी और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में कदम
श्री नायक ने कहा, “अबुआ दिसुम, अबुआ राज की सरकार में आदिवासी मूलवासी समाज के युवाओं को अपने राज्य के विकास में भागीदारी निभाने का मौका मिलना चाहिए। इससे न केवल समाज के युवाओं को आर्थिक मजबूती मिलेगी, बल्कि राज्य के समग्र विकास में भी तेजी आएगी।”
जल्द समाधान की उम्मीद
आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच ने सरकार से अपील की है कि वह इस प्रस्ताव को प्राथमिकता देते हुए कैबिनेट में लाए और जल्द से जल्द इसे लागू करे। इससे राज्य के आदिवासी और मूलवासी युवाओं को उनके अधिकार और सम्मान की अनुभूति होगी।