नालंदा से राजेश कुमार विश्वकर्मा की खबर।
प्राचीन ज्ञान की धरती नालंदा एक बार फिर वैश्विक बौद्ध समुदाय का केंद्र बन गई है। नव नालंदा महाविहार में 28 और 29 अगस्त को दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन में दुनिया भर के बौद्ध विद्वान और धर्मगुरु शामिल हो रहे हैं।
इस महत्वपूर्ण आयोजन का विषय “गुरु पद्मसम्भव के जीवन और जीवंत विरासत की खोज” है। इस सम्मेलन का आयोजन इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कन्फेडरेशन और नव नालंदा महाविहार के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर मुख्य अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. राजेश रंजन ने बताया कि यह सम्मेलन गुरु पद्मसम्भव के जीवन और शिक्षाओं पर गहन चिंतन का अवसर प्रदान करेगा। पद्मसम्भव, जो 8वीं शताब्दी में नालंदा महाविहार के प्रख्यात आचार्य थे। उन्होंने तिब्बत, नेपाल, भूटान और भारत के हिमालयी क्षेत्रों में बौद्ध धर्म के प्रसार में अभूतपूर्व योगदान दिया।
इस अद्वितीय आयोजन में भूटान, नेपाल, रूस, श्रीलंका और म्यांमार सहित विभिन्न देशों से लगभग 54 प्रतिष्ठित विद्वान और धर्मगुरु भाग ले रहे हैं। यह सम्मेलन न केवल बौद्ध अध्ययन के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि नालंदा की प्राचीन शैक्षणिक परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
राज्यपाल अर्लेकर ने अपने संबोधन में कहा कि गुरु पद्मसंभव के जीवन पर आधारित यह दो दिवसीय संगोष्ठी न केवल उनके व्यक्तित्व को समझने का अवसर देगी, बल्कि भगवान बुद्ध के संदेश को भी नए सिरे से समझने में मदद करेगी।
प्रो. रंजन ने आगे बताया कि बुद्ध ने स्वयं पद्मसम्भव के आगमन की भविष्यवाणी की थी, जिन्हें गुरु रिनपोछे के नाम से भी जाना जाता है। यह सम्मेलन उनके जीवन और शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस सम्मेलन से न केवल बौद्ध अध्ययन को बल मिलेगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को भी मजबूती मिलेगी। सम्मेलन नालंदा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को पुनः रेखांकित करने के साथ-साथ, वैश्विक बौद्ध समुदाय के बीच संवाद और समझ को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।