• सैकड़ों लाभार्थी फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर योजना का उठा रहे लाभ

बुलेटिन इंडिया, डेस्क।

जामताड़ा/रांची। राज्य की हेमंत सोरेन सरकार जहां एक ओर आदिवासियों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के अधिकारों की रक्षा और उन्हें योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है, वहीं जामताड़ा जिले से सामने आया मामला सरकार की मंशा को कठघरे में खड़ा करता नजर आ रहा है। जिले में सैकड़ों लोगों ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का लाभ उठाया है। इस फर्जीवाड़े में स्थानीय पंचायत व प्रखंड स्तरीय अधिकारियों की मिलीभगत की बात सामने आ रही है।

 

⇒ जाति बदली, पहचान छीनी – सामाजिक न्याय पर बड़ा हमला

जानकारी के अनुसार, पिछड़ी जाति और सामान्य वर्ग के कई व्यक्तियों को एससी/एसटी वर्ग का फर्जी प्रमाणपत्र बनाकर प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत लाभ दिलाया गया है। जिनमें मिश्रा, राय, महतो, मंडल जैसे सामान्य या पिछड़ी जाति के लोग शामिल हैं। इतना ही नहीं, कुछ मुस्लिम वर्ग के लोगों को भी अनुसूचित जनजाति बनाकर योजनाओं का लाभ दिलाया गया है। दूसरी ओर, कई वास्तविक आदिवासी समुदाय के व्यक्तियों को उल्टे तरीके से अनुसूचित जाति या पिछड़ा वर्ग दिखाया गया है।

स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि यह सिर्फ दस्तावेज़ी “गलती” नहीं है, बल्कि पूर्व नियोजित और सुनियोजित घोटाला है। इसका मकसद SC-ST वर्ग की जनसंख्या को आंकड़ों में बढ़ा-चढ़ाकर दिखाकर उनके हिस्से की योजनाएं, लाभ और आरक्षण अन्य वर्गों को हस्तांतरित करना रहा है।

 

⇒ संवैधानिक प्रावधानों का खुला उल्लंघन

यह कृत्य न केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15(4), 16, 17, 46, 338 व 338(ए) का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं 316, 318, 319, 336 और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(ix) के अंतर्गत दंडनीय अपराध भी है।

 

⇒ 20 हजार से अधिक लाभार्थियों में कई संदिग्ध नाम

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जामताड़ा जिले में अब तक 20,000 से अधिक लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत लाभ दिया गया है, जिनमें से 230 से अधिक लाभार्थियों के दस्तावेजों की जांच में फर्जी जाति प्रमाणपत्र की पुष्टि हुई है। इससे करोड़ों रुपये की सरकारी राशि गलत हाथों में चली गई है और वास्तविक पात्रता रखने वाले लोगों को उनका अधिकार नहीं मिल सका।

 

⇒ दलालों और राजनीतिक संरक्षण में हुआ घोटाला

स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि योजनाओं की जानकारी, पात्रता और आवेदन की प्रक्रिया आम लोगों को स्पष्ट रूप से नहीं बताई जाती। पंचायत व प्रखंड स्तर पर कार्यरत कर्मचारी और स्थानीय दलाल योजनाओं का लाभ लेने में निर्धन और अनजान लोगों का शोषण करते हैं। इसमें उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त होता रहा है, जिससे यह व्यवस्थित घोटाले का रूप ले चुका है।

 

⇒ पहचान और अधिकार दोनों पर हमला

यह घोटाला सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि लोगों की पहचान, सामाजिक सुरक्षा और आरक्षण के अधिकार पर भी बड़ा हमला है। जिस वर्ग के लिए योजनाएं बनाई गईं, उन्हें दरकिनार कर ऐसे लोगों को लाभ दिया गया जो न तो पात्र हैं और न ही वास्तविक लाभार्थी।

 

⇒ राज्य सरकार से कार्रवाई की मांग

इस गंभीर मामले पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और विभिन्न संगठनों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से तत्काल संज्ञान लेने की मांग की है। उनका कहना है कि अगर सरकार वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा को लेकर गंभीर है, तो ऐसे फर्जीवाड़े में शामिल अधिकारियों, कर्मचारियों और लाभार्थियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

 

जनता को यह भरोसा दिलाना जरूरी है कि झारखंड में सामाजिक न्याय और आरक्षण व्यवस्था के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।

 

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