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पूर्व डकैत कुसुमा नाइन की मौत
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बेहमई कांड के प्रतिशोध में की थी 14 लोगों की हत्या
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मौत से ग्रामीणों में खुशी
बुलेटिन इंडिया, डेस्क।
इटावा जिला जेल में उम्र कैद की सजा काट रही पूर्व डकैत कुसुमा नाइन का शनिवार को केजीएमयू में निधन हो गया। वह टीबी से ग्रसित थीं और हालत गंभीर होने पर उन्हें पहले इटावा जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन आराम न मिलने पर केजीएमयू रेफर किया गया। वहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मौत की खबर सुनते ही औरैया के अस्ता गांव में खुशी का माहौल बन गया, जहां 1984 में उन्होंने 12 लोगों को गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी।
बेहमई कांड का प्रतिशोध बना नरसंहार का कारण
बेहमई कांड (1981) में फूलन देवी ने 20 लोगों की हत्या कर पूरे देश में सनसनी फैला दी थी। इस कांड का बदला लेने के लिए डकैत लालाराम, श्रीराम और कुसुमा नाइन ने 1984 में औरैया जिले के अस्ता गांव पर हमला किया। इस गांव में फूलन देवी के सजातीय लोग रहते थे। बदले की भावना से 12 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया गया। इसके बाद पूरे गांव में आग लगा दी गई, जिसमें मां-बेटे की जलकर मौत हो गई। इस नरसंहार में कुल 14 लोगों की जान गई थी।

गांव में शोक नहीं, जश्न का माहौल
कुसुमा नाइन की मौत की खबर मिलते ही अस्ता गांव में खुशी का माहौल बन गया। नरसंहार में अपने पति को गंवाने वाली महिलाओं ने उनकी मौत को न्याय बताया। धनीराम की विधवा रामदुलारी ने कहा, “आज भी वह मंजर मेरी आंखों के सामने घूमता है। मेरा सुहाग उजड़ गया था, आज मुझे शांति मिली।” वहीं भगवानदीन की विधवा रामकुमारी ने कहा, “ठीक हुआ, कुसुमा मर गई। इसने मेरे पति को मार डाला था।”
गांव के ब्रजकिशोर ने कहा, “हमें कुसुमा नाइन की मौत से बहुत खुशी है। उसने हमारे गांव को तबाह कर दिया था।”
कुसुमा नाइन: प्यार, नफरत और डकैती का सफर
कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ था। उनके पिता गांव के प्रधान थे और सरकारी राशन की दुकान भी चलाते थे। बचपन से ही वह सुविधाओं में पली-बढ़ीं। जब वह तीसरी कक्षा में थीं, तब पड़ोसी युवक माधव मल्लाह से प्रेम हो गया। कुछ वर्षों बाद वह उसके साथ भाग गईं, लेकिन पुलिस ने दोनों को दिल्ली से पकड़ लिया। बदनामी के डर से उनके पिता ने उनकी शादी किसी और से करा दी।
हालांकि, माधव मल्लाह डकैत बन चुका था। वह अपनी गैंग के साथ गांव आया और कुसुमा के पति को बंदूक दिखाकर उसे अपने साथ ले गया। डकैती के एक मामले में गिरफ्तार होने पर कुसुमा तीन महीने जेल में रही। जब वह लौटी, तो परिवार ने एक और शादी कर दी। लेकिन उनकी जिंदगी में फिर से माधव मल्लाह लौट आया, जो अब डकैत विक्रम मल्लाह की गैंग का हिस्सा था।

फूलन देवी से बढ़ी दुश्मनी
कुसुमा नाइन ने फूलन देवी से नफरत करना शुरू कर दिया था। फूलन देवी, जो विक्रम मल्लाह की गैंग में थी, कुसुमा से पानी भरवाती, खाना बनवाती और गुलाम की तरह रखती। इस अपमान के कारण कुसुमा फूलन और अपने पति माधव मल्लाह से घृणा करने लगीं।
बाद में, विक्रम मल्लाह ने कुसुमा को लालाराम के पास भेजा ताकि वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाकर उसकी हत्या कर सके। लेकिन कुसुमा लालाराम के साथ मिल गईं और उल्टा विक्रम मल्लाह की हत्या करवा दी। इस मुठभेड़ में माधव मल्लाह भी मारा गया। इसके बाद कुसुमा पूरी तरह से लालाराम की गैंग का हिस्सा बन गईं और हथियार चलाने की ट्रेनिंग लेने लगीं।
डकैत बनी और प्रतिशोध लिया
लालाराम ने कुसुमा को गैंग की मुख्य सदस्य बना दिया। वह डकैतों के साथ लूट, अपहरण और हत्याओं को अंजाम देने लगीं। बेहमई कांड के बाद बदले की आग में जलते हुए उन्होंने 1984 में अस्ता गांव पर हमला किया और 14 लोगों की हत्या कर दी।
एक इंटरव्यू में कुसुमा ने कहा था, “मैं बीहड़ में 25 साल गुस्से में रही।” लेकिन उन्होंने कभी नहीं बताया कि यह गुस्सा किस बात का था।

डकैत से जेल तक का सफर
90 के दशक में पुलिस के दबाव के कारण कई डकैतों ने आत्मसमर्पण कर दिया। कुसुमा नाइन भी 1995 में आत्मसमर्पण करने वालों में शामिल थीं। उन पर हत्या, अपहरण, डकैती समेत कई गंभीर आरोप थे। अदालत ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई, जिसे वह इटावा जेल में काट रही थीं।
टीबी की बीमारी के कारण हालत बिगड़ने पर उन्हें केजीएमयू में भर्ती कराया गया, जहां 2 मार्च 2025 को उनका निधन हो गया।
गांव वालों को मिला न्याय?
अस्ता गांव के लोगों के लिए कुसुमा नाइन की मौत एक संतोषजनक खबर बन गई। जिन महिलाओं ने अपने पति और बेटों को इस नरसंहार में खो दिया था, उन्होंने इसे न्याय बताया। हालांकि, कुसुमा नाइन के जीवन की कहानी प्यार, प्रतिशोध, और अपराध के जटिल ताने-बाने को दर्शाती है, जिसमें एक औरत समाज के बंधनों से निकलकर बीहड़ की रानी बन गई, लेकिन अंततः उसे अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ा।