बुलेटिन इंडिया, डेस्क।
बोकारो। किसी इंसान की एहमियत उसे पद से होती है ना कि नाम व चेहरे से। यदि वह पद अस्थाई हो तो उसपर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। क्योंकि पद के जाते हीं उसकी औकात एक तुच्छ भर का व्यक्ति भी दिखा देता है।
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ऐसा हीं कुछ देखने को मिला बोकारो के जिला परिषद कार्यालय में। जहां झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की तस्वीर कबाड़ में पड़ी मिली। इस घटना के बाद जिला प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठने लगे हैं।
चंपई सोरेन, जिन्होंने कुछ महीनों तक झारखंड के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी, भले ही अब इस पद पर न हों, लेकिन उनके नाम के साथ “माननीय” शब्द जुड़ा है। ऐसे में उनकी तस्वीर का इस तरह अपमानजनक स्थिति में मिलना न केवल प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है, बल्कि यह दर्शाता है कि पद से हटने के बाद व्यक्ति की अहमियत किस तरह कम कर दी जाती है।
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प्रशासन पर लापरवाही के आरोप
यह मामला सामने आने के बाद कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने प्रशासन की आलोचना की है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार किसी पूर्व मुख्यमंत्री की तस्वीर इस हाल में कैसे पहुंची? क्या यह प्रशासन की लापरवाही है या फिर एक सोची-समझी अनदेखी? कुछ नेताओं का कहना है कि प्रशासन को इस मामले में जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और दोषियों पर उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।
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प्रशासन का पक्ष
वहीं, जिला प्रशासन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, यह तस्वीर संभवतः पुराने दस्तावेजों और वस्तुओं की सफाई के दौरान गलती से फेंक दी गई होगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि किसी पूर्व मुख्यमंत्री की तस्वीर को कबाड़ में डालना क्या प्रशासनिक लापरवाही नहीं है?
जनता की प्रतिक्रिया
इस घटना को लेकर आम जनता में भी आक्रोश देखा जा रहा है। लोगों का कहना है कि जब एक मुख्यमंत्री की तस्वीर का यह हाल हो सकता है, तो आम आदमी से प्रशासन कितना संवेदनशीलता बरतता होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
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मामले की जांच की मांग
इस पूरे मामले की जांच की मांग की जा रही है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह प्रशासनिक गलती थी या किसी की जानबूझकर की गई हरकत। राजनीतिक दलों और जनता ने सरकार से अपील की है कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों और सम्मानित पदों पर रहे लोगों के प्रति उचित सम्मान दिखाया जाए।
इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या किसी व्यक्ति की पहचान सिर्फ उसके पद से होती है? अगर ऐसा है, तो पद से हटने के बाद उसकी अहमियत इतनी कम क्यों हो जाती है?