रीना साहनी की कलम से ✒️

बदलते समय के साथ युवाओं में रफ्तार का जुनून बढ़ता जा रहा है। बाइक चलाने का क्रेज आज के युवाओं में किसी लत से कम नहीं है, लेकिन चिंता की बात यह है कि वे सिर्फ रफ्तार ही नहीं, बल्कि तेज आवाज वाले साइलेंसर का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इस कारण सड़कों पर ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, जिससे न केवल आम नागरिकों को असुविधा हो रही है, बल्कि यह नियमों का खुला उल्लंघन भी है।

ध्वनि प्रदूषण और कानूनी प्रावधान

ध्वनि प्रदूषण को लेकर सरकार और प्रशासन दोनों ही लगातार सख्त निर्देश जारी कर रहे हैं। मोटर वाहन अधिनियम के तहत किसी भी वाहन से 80-90 डेसिबल से अधिक ध्वनि नहीं आनी चाहिए। वहीं, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत तेज आवाज वाले हॉर्न और मॉडिफाइड साइलेंसर पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है। इसके बावजूद, सड़कों पर दौड़ने वाली तेज आवाज वाली बाइकों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही।

पुलिस प्रशासन की ओर से बार-बार निर्देश दिए जाते हैं कि ऊंची आवाज वाली बाइक चलाने वालों पर सख्त कार्रवाई होगी, लेकिन वास्तविकता इससे काफी अलग है। शहरों और कस्बों में आए दिन ऐसे बाइक सवार देखे जा सकते हैं, जो नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए सड़कों पर दौड़ते हैं। इन बाइकों से निकलने वाली तेज आवाज बुजुर्गों, बच्चों और बीमार लोगों के लिए परेशानी का सबब बन चुकी है।

युवाओं की मानसिकता और समाज पर प्रभाव

आज का युवा खुद को भीड़ से अलग दिखाने की होड़ में है। उन्हें लगता है कि तेज आवाज में बाइक चलाने से वे अधिक आकर्षण का केंद्र बनते हैं। यह प्रवृत्ति उनके मानसिकता को दर्शाती है कि वे अपने शौक के लिए दूसरों की परेशानी की परवाह नहीं करते।

ध्वनि प्रदूषण से न केवल सुनने की क्षमता प्रभावित होती है, बल्कि यह मानसिक तनाव, अनिद्रा, और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याओं को भी जन्म देता है। कई शहरों में तेज आवाज वाली बाइकों के कारण दुर्घटनाएं भी बढ़ी हैं, क्योंकि यह आवाज अचानक लोगों का ध्यान भटका देती है, जिससे सड़क हादसे होने की संभावना बढ़ जाती है।

प्रशासन की निष्क्रियता और आवश्यक कदम

कई राज्यों में पुलिस द्वारा विशेष अभियान चलाकर तेज आवाज वाली बाइकों पर कार्रवाई की जाती है, लेकिन यह अभियान स्थायी समाधान नहीं है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि ऐसे नियमों का सख्ती से पालन नहीं किया जाता। प्रशासन को चाहिए कि वह न केवल चालान काटने तक सीमित रहे, बल्कि इन बाइकों को जब्त कर, उनके अवैध मॉडिफिकेशन को भी हटाए।

इसके अलावा, वाहन शोर-नियंत्रण नियमों को और कड़ा किया जाना चाहिए। जो बाइक निर्माता कंपनियां ऐसे साइलेंसर उपलब्ध करवा रही हैं, उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही, सार्वजनिक स्थानों पर जागरूकता अभियान चलाकर युवाओं को ध्वनि प्रदूषण के दुष्परिणामों से अवगत कराना आवश्यक है।

समाज की जिम्मेदारी और निष्कर्ष  

समाज में भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह तेज आवाज वाली बाइक चलाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा न दे। माता-पिता को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों को इस विषय में समझाएं और ऐसे वाहनों के मॉडिफिकेशन को हतोत्साहित करें।

यदि समय रहते इस समस्या को नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले समय में ध्वनि प्रदूषण और सड़क हादसों में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है। प्रशासन, समाज और युवाओं को मिलकर इस विषय पर गंभीरता से विचार करना होगा, तभी इस समस्या का स्थायी समाधान निकल सकता है।

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