आदिवासी मूलवासी समाज के जल, जंगल, जमीन बचाने के नारों को ‘रोटी, बेटी, माटी’ में गुम करने की भाजपा की साजिश: विजय शंकर नायक

BULLETIN INDIA DESK ::

आदिवासी मूलवासी समाज के जल, जंगल, जमीन बचाने के नारों को ‘रोटी, बेटी, माटी’ में गुम करने की भाजपा की साजिश: विजय शंकर नायक

Bulletin India. Ranchi.

आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने भाजपा के ‘रोटी, बेटी, माटी’ नारे पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा इस चुनावी नारे के जरिए आदिवासी मूलवासी समाज के जल, जंगल, जमीन बचाने के ऐतिहासिक आंदोलन को कमजोर करने का प्रयास कर रही है।

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श्री नायक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हजारीबाग में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत ‘रोटी, बेटी, माटी’ के नारे के साथ की, जो झारखंड के आदिवासी समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है। उन्होंने इसे एक साजिश बताया, जिसके जरिए भाजपा जल, जंगल, जमीन के नारों को धूमिल कर रही है।

उन्होंने कहा कि झारखंड में असली संघर्ष जल, जंगल, जमीन बचाने और इन प्राकृतिक संसाधनों को लूटने वालों के बीच है। आदिवासी समाज सदियों से इन संसाधनों पर निर्भर रहा है, जो उनके जीवन का आधार हैं। जल, जंगल, जमीन बचे रहेंगे तो आदिवासी समाज को किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

श्री नायक ने कहा कि झारखंड अलग राज्य का आंदोलन भी इसी संघर्ष का हिस्सा था, जिसका मकसद जल, जंगल, जमीन और अस्मिता को बचाना था। तपकारा, कोयलकारो और नेतरहाट में फायरिंग रेंज के खिलाफ चल रहे आंदोलन इसी बात का सबूत हैं कि झारखंड का मूल संघर्ष जल, जंगल, जमीन को बचाने का ही रहा है।

भाजपा पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा बेटियों की सुरक्षा की बात कैसे कर सकती है, जब वह बलात्कारियों को माला पहनाती है और दुष्कर्म के आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण देती है। आदिवासी समाज में बेटियों को बोझ नहीं माना जाता, जबकि भाजपा और संघ की विचारधारा महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर केवल राजनीति करती है।

श्री नायक ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा जल, जंगल, जमीन को अपने कॉरपोरेट दोस्तों, खासकर अडानी को सौंपना चाहती है, जैसा कि उन्होंने हसदेव के जंगलों के साथ किया। झारखंड के सारंडा जंगलों को भी इसी तरह लूटने की साजिश रची जा रही है।

मणिपुर और लद्दाख के आदिवासी अपनी अस्मिता और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि झारखंड के आदिवासी पांचवीं अनुसूची को बचाने के लिए कटिबद्ध होंगे या ‘रोटी, बेटी, माटी’ के झूठे नारे में उलझकर अपने जल, जंगल, जमीन के संघर्ष को भूल जाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है।

श्री नायक ने झारखंड के दलित, आदिवासी और मूलवासी समाज से अपील की कि वे वोट के जरिए भाजपा को इसका जवाब दें और जल, जंगल, जमीन के संघर्ष को जारी रखें, जो उनके पूर्वजों द्वारा अनादिकाल से चलाया जा रहा है।

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