Bulletin India, Correspondent.
विशद कुमार
झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा दिनांक 9 और 10 अक्टूबर, 2025 को दो दिवसीय “राजनीतिक युवा सहचिंतन शिविर” का एक सार्थक आयोजन रांची जिले के नामकुम स्थित बगाइचा में संपन्न हुआ। यह शिविर झारखंड के उभरते हुए राजनीतिक और सामाजिक रूप से सक्रिय युवाओं को राजनीति की बारीकियों, नेतृत्व विकास और नीति-निर्माण की प्रक्रिया से जोड़ने का एक सशक्त प्रयास था।
उक्त शिविर में झारखंड के 10 जिलों – रांची, लोहरदगा, गुमला, पाकुड़, पलामू, दुमका, चाईबासा, चैनपुर, चतरा और पूर्वी सिंहभूम से आए युवा प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम का संचालन झारखंड जनाधिकार महासभा की युवा इकाई और आयोजन समिति द्वारा किया गया, जिसमें विभिन्न सामाजिक, शैक्षणिक और छात्र संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
उक्त कार्यक्रम पर आयोजक मंडल ने बताया कि शिविर के उद्देश्य था कि राजनीति में युवाओं की रचनात्मक भागीदारी को बढ़ावा देना, उन्हें नीति-निर्माण की प्रक्रिया से जोड़ाना और लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने में उनकी भूमिका को पहचानना।
शिविर की शुरुआत में कार्यक्रम के उद्देश्य, रूपरेखा और अपेक्षा पर मंथन ने अपनी बात रखी।
युवाओं के परिचय के साथ पहला सत्र झारखण्ड का राजनीतिक इतिहास, लोकतंत्र की उपलब्धियां, कमियां और अपने राजनितिक अनुभव को सामाजिक कार्यकर्त्ता दयामनी बारला द्वारा साझा किया गया। उन्होंने राजनीति और समाजिक काम के बीच के अंतर पर प्रकाश डालते हुए चुनाव लड़ने की प्रक्रिया में चुनौतियां से अवगत कराया। उन्होंने झारखंड अलग राज्य के गठन, आंदोलन और लोकतंत्र की जड़ों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि झारखंड की राजनीति सामाजिक न्याय और स्वाभिमान के संघर्ष से निकली है, अतः युवाओं को इसके इतिहास की गहराई को समझना होगा।
अगले सत्र में माले के पूर्व विधायक कॉमरेड विनोद कुमार सिंह ने युवाओं को संबोधित कर कहा कि “झारखंड का लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब युवा अपनी जिम्मेदारियों को पहचानेंगे और ईमानदार नेतृत्व की परंपरा को आगे बढ़ाएँगे।”
विनोद सिंह ने राजनीति और जनता के रिश्ते पर गहन चर्चा की। उन्होंने कहा कि “राजनीति में मूल्य, ईमानदारी और सामाजिक दृष्टि का होना अत्यंत आवश्यक है।”
उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि “वे केवल दर्शक न बनें, बल्कि बदलाव की प्रक्रिया में स्वयं को शामिल करें।”
विनोद सिंह ने कहा कि “युवा राजनीति में प्रवेश कर, न केवल परिवर्तन का नेतृत्व कर सकते हैं, बल्कि नई राजनीति की दिशा भी तय कर सकते हैं।”
अंत में वीरेंद्र ने सामाज में लोगों के विचारधारा में दो बाइनरी पार्टी का समर्थन करने के नुकसान पर चर्चा की और एक नई दिशा बनाने के संदर्भ में अपनी बात रखी।
इस सत्र में प्रतिभागियों ने राज्य की वर्तमान राजनीतिक स्थिति, नीतिगत असमानताओं और सामाजिक असंतुलन पर प्रश्न भी रखे।
दिनभर की गहन चर्चाओं के बाद शाम को खुला सत्र का आयोजन हुआ। युवाओं ने विचार विमर्श करके अपनी अपनी बात रखीं।
शिविर के दूसरे दिन की शुरुआत अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज़ तथा नीति विश्लेषक दीपक रंजीत के विचारों के साथ हुई। उन्होंने युवाओं की राजनीति में भागीदारी को लोकतंत्र की मजबूती के लिए अनिवार्य बताया।
ज्यां द्रेज़ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि “युवाओं का संगठित हस्तक्षेप ही नीतियों को जनपक्षीय बना सकता है।”
उन्होंने कहा कि “समाज तभी न्यायपूर्ण बन सकता है जब उसकी राजनीति युवाओं के विचारों से संचालित हो।”
दीपक रंजीत ने कहा कि “युवाओं को न केवल राजनीतिक दलों की जवाबदेही तय करनी चाहिए बल्कि वैकल्पिक राजनीति के नए रास्ते तलाशने चाहिए।”
इसके बाद हुए ‘युवा राजनीतिक नेतृत्व विकास’ सत्र में भारत भूषण, ज्योति कुजूर और वीरेंद्र ने नेतृत्व कौशल का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया। प्रतिभागियों ने समूहों में नेतृत्व मॉडल तैयार किए और क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान सुझाए।
भारत भूषण ने कहा कि “नेतृत्व का अर्थ केवल बोलना नहीं, बल्कि सुनना और सबको साथ लेकर चलना है।”
सत्र के अंत में युवाओं ने निर्णय लिया कि वे अपने-अपने जिलों में नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर आयोजित करेंगे
दोपहर के सत्र में ‘युवा राजनीतिक कार्यक्रम की योजना और भविष्य की दिशा’ पर चर्चा की गई।
संयोजक मंडल के दीपक रंजीत, बिरेंद्र और रिया के मार्गदर्शन में पहले और दूसरे दिन के विचारों और सुझावों को समेटते हुए एक समग्र युवा राजनीतिक कार्य योजना तैयार की गई। युवाओं ने यह संकल्प लिया कि वे आगामी महीनों में विभिन्न जिलों में जनसंवाद कार्यक्रम आयोजित करेंगे, जिसमें स्थानीय मुद्दों पर युवाओं की भूमिका तय की जाएगी।
शिविर का समापन टॉम द्वारा धन्यवाद ज्ञापन और झारखंड जनाधिकार महासभा के संयोजक के प्रेरक वक्तव्य के साथ हुआ।
कार्यक्रम में बताया गया कि यह शिविर झारखंड के युवाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस कदम है।
इस दो-दिवसीय शिविर के अंत में तीन महत्वपूर्ण निष्कर्ष उभरकर सामने आए —
पहला – लोकतंत्र को सशक्त बनाने के लिए युवाओं की सक्रिय भागीदारी ज़रूरी है।
दूसरा – स्थानीय मुद्दों पर नीति निर्माण में युवाओं की भूमिका निर्णायक होनी चाहिए।
तीसरा – पारदर्शी व मूल्यनिष्ठ राजनीति ही राज्य के समावेशी विकास का आधार बन सकता है।
आयोजकों ने घोषणा की कि झारखंड जनाधिकार महासभा आगामी महीनों में झारखंडी युवाओं को संगठित करेगा, जो राज्यभर में जन मुद्दों पर राजनीतिक दबाव बनाएंगे और इसके लिए राजनीतिक शिक्षा, नेतृत्व प्रशिक्षण और जनविमर्श करेंगे।