Bulletin India.
डॉ सुनील कुमार सिन्हा की कलम से ✒️
15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से प्रचार मंत्री ‘झुठलर’ का उबाऊ भाषण से प्रेरित होकर यह विचार लिखने का ख़याल आया…
पहला विचार – “जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा…”
इटली के फ़ासिस्ट मुसोलिनी के शव के साथ जो हुआ था, उस परिणाम से विचलित जर्मनी का तानाशाह हिटलर ने ख़ुदकुशी की थी।
द्वितीय विश्व युद्ध में कॉमरेड स्टालिन के नेतृत्व में सोवियत रूस की लाल सेना ने उसी ज़हरीला सांप हिटलर का फ़न कुचल दिया था, जिसे संघी गिरोह अपना आदर्श मानता है !
“युद्ध से भागता दिखाई दूं तो मुझे गोली से उड़ा देना !”
ये थे इटली के अखबारों की सुर्खियां बने मुसोलिनी के शब्द।
दरअसल ऐसी कोरी लफ़्फ़ाजी वह दो दशक से करता आ रहा था। मगर उस दिन लेक कोमो के किनारे सर्द हवा के थपेड़ों के बीच, अपनी गर्लफ्रेंड कार्ला पेट्टाची के साथ वह एक फ़ायरिंग स्क्वॉड के सामने खड़ा था। वहां मुसोलिनी को गर्लफ्रेंड के साथ गोली मारी गई और ट्रक में उसकी लाश को लादकर इटली के मिलान शहर में उसी चौक में लैंम्प पोस्ट से उल्टा लटका दिया गया था, जहां उसने क्रांतिकारियों के साथ ठीक वही सलूक किया था।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने मुसोलिनी की मौत पर लिखा था – ”एक शख़्स जो पुराने रोम के गौरव को वापस लाने की बात किया करता था, उसकी लाश मिलान के एक चौक में लटकी पड़ी हुई थी और हजारों लोग उसे ठोकर मार कर और उस पर थूक कर उसे लानत भेज रहे थे।”
प्रोफ़ेसर कर्टज़र ने अपनी किताब ‘द पोप एंड मुसोलिनी’ में लिखा था – ”मुसोलिनी की मृत्यु का समाचार रेडियो से 29 अप्रैल, 1945 को अपने भूमिगत बंकर में छुपे हिटलर को मिला।”
सारा विवरण जानने के बाद हिटलर ने कहा, “मेरी लाश किसी क़ीमत पर दुश्मनों के हाथ नहीं पड़नी चाहिए।”
बर्लिन में जमीन के अन्दर 50 फुट नीचे एक बंकर में छिपे लाखों यहूदियों का कसाई जर्मनी का क्रूर तानाशाह हिटलर ने खुद और अपनी पत्नी इवा ब्राउन के साथ पहले ज़हर खाया फिर गोली मारकर खुदकुशी कर लिया था। इससे पहले उसने अपने कुत्ते को ज़हर खिलाकर टेस्ट कर लिया था। यह तथ्य इस बात का गवाह है कि ज़ालिम चाहे जितना भी ताकतवर हो, उसका अंत उतना ही भयानक होगा।
मुसोलिनी और हिटलर के नए अवतार गुजराती गैंग लीडर को क्या तारीख़ से सबक नहीं लेना चाहिए?
आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर गुजरात की ज़ालिम सरकार ने बिल्किस बानो के 2002 के कुख्यात किन्तु तथाकथित ‘संस्कारी ब्राह्मण’ बलात्कारियों को आज़ाद कर बेहयाई की सारी हदें पार कर दी। हत्या और बलात्कार के सजायाफ्ता अपराधियों का समर्थन और स्वागत करने की परंपरा इस देश में एक खास सामंती और पितृसत्तात्मक (Feudal & Patriarchal) सोच वाले संघी निज़ाम का हथकंडा बन गया है।
JNU और जामिया जैसे वर्ल्ड क्लास विश्वविद्यालयों को पहले तो गोदी मीडिया द्वारा डॉक्टर्ड वीडियो चलाकर ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ बताकर बदनाम किया जाता है और बाद में दिल्ली पुलिस के संरक्षण में तड़ीपार गृहमंत्री के गुण्डे हॉस्टल में घुंसकर छात्रों की पिटाई करते हैं। गरीबों, आदिवासियों से हमदर्दी रखने वाले बुद्धिजीवियों को ‘अर्बन नक्सल’ लेबल कर दिया जाता है। दरअसल ज़ाहिल ज़मात के इन हुक्मरानों ने शिक्षा पर सर्जिकल स्ट्राइक ही कर रखा है। निराशा के अंधकार में डूबे बेरोजगार युवकों को आंदोलन करने पर उनके घरों में घुंसकर पीटा जा रहा है। सभी आंदोलनों के साथ प्राय: यही पैटर्न देखने को मिलता है।
अडानी – अंबानी के कथित दलाल और किसानों के हत्यारे पाखंडी मोदी निज़ाम के गृह राज्य मंत्री ‘टेनी पुत्र’ द्वारा कारों का काफ़िला चढ़ाकर किसानों को कुचल डालने से बर्बर घटना और क्या हो सकती है?
न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों और आप पार्टी के सांसद संजय सिंह और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित उमर खालिद जैसे सैंकड़ों मानवाधिकार कार्यकर्त्ता को जेलों में ठूंसना, दिल्ली पुलिस और ED, सीबीआई और इनकम टैक्स का हमला, कोर्ट और केंद्रीय चुना आयोग (के.चु.आ) का प्रबंधन डरे हुए तानाशाह की कहानी कह रहा है।
वे इतने डरे क्यों है?…
”वे डरते हैं ! किस चीज से डरते हैं वे? तमाम धन दौलत, पुलिस फौज और गोला बारूद के बावजूद वे डरते हैं कि एक दिन गरीब और निहत्थे लोग उनसे डरना बंद कर देंगे !”
गोरख पाण्डेय की कविता की ये पंक्तियां आज और भी प्रासंगिक हो चली हैं।
दरअसल जम्हुरियत पसंद और विविधता भरे हमारे देश में फासिज़्म चल ही नहीं सकता है क्योंकि केंद्रीय चुना आयोग (के.चु.आ), ED, CBI, IT, NIA, Judiciary, पुलिस, जेल जैसी दमनकारी संस्थाएं कम पड़ जाएगी।
इन माफ़ीवीरों के पास गुण्डा है, अथाह पैसा है और है कारों का काफ़िला। अभी इनके हाथ में है पुलिस का डंडा भी आ गया है और ये सत्ता के नशे में पागल हो गए हैं। परिणामस्वरुप सैकड़ों मुस्लिमों, दलितों की मॉब-लिन्चींग और महिलाओं के साथ सामुहिक दुर्व्यवहार और हत्या की जा रही है। क्या आप उस भीड़तंत्र का हिस्सा बनने को तैयार हैं या इनकी मुखर मुखालफ़त करेंगे? यकीन मानिए अगला नम्बर आपका भी हो सकता है।
(नोट:- डॉ सुनील धनबाद के प्रसिद्ध चिकित्सक हैं, और यह लेख उनका व्यक्तिगत विचार है।)