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नई दिल्ली/जयपुर। राजस्थान कैडर में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों के चयन को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि राज्य के मुख्य सचिव सुधांशु पंत की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने जानबूझकर अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के 14 योग्य अधिकारियों की अनदेखी करते हुए सभी चार रिक्त पदों पर केवल सवर्ण समाज के अधिकारियों का चयन किया। इस कार्रवाई को संविधान, आरक्षण नीति और सामाजिक न्याय की भावना के खिलाफ बताया जा रहा है।
⇒ चयन प्रक्रिया और विवाद की जड़
यह चयन “अन्य सेवा से” (Non-State Civil Service quota) कोटे के तहत हुआ है, जिसमें राज्य सिविल सेवा से अधिकारियों को IAS में प्रमोट किया जाता है। प्रक्रिया के तहत 18 अधिकारियों का साक्षात्कार हुआ था, जिनमें 14 SC/ST/OBC वर्ग से और केवल 4 सामान्य वर्ग से थे। हैरानी की बात यह रही कि अंतिम चयन में एक भी SC/ST/OBC उम्मीदवार को शामिल नहीं किया गया और चारों सीटें सवर्ण अधिकारियों – डॉ. नीतीश शर्मा, अमिता शर्मा, नरेंद्र कुमार मांघणी और नरेश कुमार गोयल – को दे दी गईं।
केंद्र सरकार ने 8 अगस्त 2025 को अधिसूचना जारी कर इन चारों अधिकारियों की नियुक्ति की पुष्टि की। यह चयन 2022 की सेलेक्ट लिस्ट के अंतर्गत हुआ है, जिसके तहत 1 जनवरी से 31 दिसंबर 2022 तक रिक्त हुए पदों को भरा जाना था।
⇒ सामाजिक संगठनों और नेताओं की प्रतिक्रिया
सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाले संगठन ‘ट्राइबल आर्मी’ के संस्थापक हंसराज मीणा ने इसे “संविधान और सामाजिक न्याय की खुली अवहेलना” करार दिया। उन्होंने कहा – “14 योग्य SC/ST/OBC उम्मीदवारों को बाहर करना और सभी सीटें एक ही जाति को देना अन्याय है। संविधान सबको बराबरी का अधिकार देता है। जब सारी सीटें सिर्फ एक जाति को दी जाती हैं, तो यह न केवल संविधान बल्कि लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।”
उन्होंने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से तत्काल जवाब मांगते हुए चेतावनी दी कि अगर सरकार ने सफाई नहीं दी तो उन्हें पद से इस्तीफा देना चाहिए।
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ने भी इस फैसले को जातिवादी मानसिकता का परिचायक बताया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा –
“सरकार को SC, ST, OBC, MBC और माइनॉरिटी कैटेगरी में कोई भी योग्य अधिकारी नहीं मिला! प्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि चारों सीटें केवल सामान्य वर्ग से भर दी गईं। यह खुला जातिवाद है। भाजपा सरकार की जवाबदेही जनता के प्रति है, न कि जातिवादी सोच वाले अफसरों के प्रति।”
⇒ जातिगत जनगणना और आरक्षण बहस से जुड़ा मामला
इस विवाद ने एक बार फिर आरक्षण और सामाजिक प्रतिनिधित्व पर बहस को हवा दे दी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यही कारण है कि राहुल गांधी जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं, ताकि सभी समुदायों को उनकी आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी मिल सके।
वहीं, यह मुद्दा ऐसे समय में उठा है जब सुप्रीम कोर्ट में SC/ST आरक्षण पर ‘क्रीमी लेयर’ लागू करने को लेकर सुनवाई चल रही है। आलोचक कहते हैं कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा की बहसों और 1930–32 के राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के दौरान स्पष्ट किया था कि दलित और आदिवासी समाज को उनकी आर्थिक स्थिति चाहे जैसी हो, सामाजिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
रिटायर्ड न्यायाधीशों और विशेषज्ञों का मानना है कि SC/ST को आरक्षण से बाहर करने के लिए ‘क्रीमी लेयर’ का तर्क खतरनाक हो सकता है, क्योंकि सामाजिक भेदभाव से बचना केवल आर्थिक आधार पर संभव नहीं है। उनका कहना है कि आर्थिक रूप से सक्षम SC/ST अधिकारी भी अक्सर नौकरी में भेदभाव, झूठे आरोप, पदावनति और चयन प्रक्रिया में पूर्वाग्रह का सामना करते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केवल चार पदों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक ढांचे में पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गहरे सवाल खड़ा करता है। अगर वास्तव में योग्य उम्मीदवारों को जातिगत पूर्वाग्रह के कारण बाहर किया गया है, तो यह संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक न्याय व्यवस्था की जड़ पर चोट है।
अब निगाहें केंद्र और राज्य सरकार पर हैं कि वे इस विवादास्पद चयन प्रक्रिया पर क्या रुख अपनाते हैं और क्या इसमें किसी तरह की जांच होगी या नहीं।