• किसके प्रयास से मिली मंजूरी? सवालों के घेरे में केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका
बुलेटिन इंडिया।
सत्या पॉल की कलम से ✒️
बोकारो। “एक अनार सौ बीमार” यह कहावत इन दिनों बोकारो जिले में पूरी तरह चरितार्थ होती नजर आ रही है। मुद्दा है बोकारो स्टील सिटी की एक अहम सड़क के निर्माण को लेकर। जहां एक ओर सड़क निर्माण की स्वीकृति को लेकर आम जनता को राहत की उम्मीद जगी है, वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो प्रमुख नेता धनबाद सांसद ढुल्लू महतो और बोकारो के पूर्व विधायक विरंची नारायण इस परियोजना का श्रेय लेने की होड़ में आमने-सामने आ खड़े हुए हैं।
⇒ 62.2 करोड़ की लागत से बनेगी फोर लेन सड़क
केंद्र सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा हाल ही में शास्त्री चौक (सेक्टर-06) से लेकर तेलमोचो (NH-32) तक की 5.965 किलोमीटर लंबी सड़क को फोरलेन में विकसित करने की घोषणा की गई है। इस परियोजना पर कुल 62.2 करोड़ रुपए की लागत आने वाली है।
⇒ दोनों नेताओं के पास हैं ‘दावे’ और ‘सबूत’
इस सड़क के स्वीकृति की घोषणा के बाद दोनों नेताओं ने इसे अपने प्रयासों का परिणाम बताया है। पूर्व विधायक विरंची नारायण ने एक पत्र जारी किया है, जो झारखंड सरकार के पथ निर्माण विभाग के अवर सचिव द्वारा फरवरी 2024 में जारी किया गया था। उस पत्र के अनुसार, श्री नारायण ने झारखंड विधानसभा में इस सड़क की जर्जर हालत का मुद्दा उठाया था। जवाब में सरकार ने बताया था कि फोरलेन निर्माण हेतु केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है और स्वीकृति मिलते ही काम शुरू कर दिया जाएगा।
वहीं दूसरी ओर, सांसद ढुल्लू महतो ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा 27 जून 2025 को भेजे गए एक पत्र को साझा किया है। इस पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा है कि “आपके अनुरोध पर इस सड़क के निर्माण को मंजूरी दी गई है।”
⇒ सोशल मीडिया पर समर्थकों में भी संघर्ष
इस प्रकरण ने भाजपा के भीतर ही सियासी संग्राम को जन्म दे दिया है। दोनों नेताओं के समर्थक विशेष रूप से सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के दावों को गलत सिद्ध करने और अपने नेता को ‘वास्तविक हितैषी’ बताने में जुटे हैं। जिससे पूरे मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया है।
⇒ केंद्र सरकार की मंशा पर उठ रहे सवाल
इस मामले ने एक बड़ा राजनीतिक सवाल खड़ा कर दिया है, अगर झारखंड सरकार ने फरवरी 2024 में इस सड़क के निर्माण के लिए केंद्र से आग्रह किया था, तो उस समय मंजूरी क्यों नहीं दी गई? क्या यह मंजूरी सिर्फ इसलिए जून 2025 में दी गई, ताकि केंद्र सरकार यह दिखा सके कि वह जनता के प्रति अधिक संवेदनशील है, जबकि राज्य सरकार निष्क्रिय है?
भाजपा को इन सब चीजों में महारत हासिल है, जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है वहां केंद्र की ओर से कोई विशेष लाभ नहीं मिला है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि फरवरी 2024 में ही स्वीकृति मिल गई होती, तो अब तक निर्माण कार्य शुरू हो चुका होता और आम लोगों को राहत मिलती। लेकिन इससे झारखंड की सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार (झामुमो, कांग्रेस और राजद) को श्रेय मिल सकता था, जिसे भाजपा शायद टालना चाहती थी।

⇒ जनता के कष्ट की कीमत पर राजनीतिक श्रेय की लड़ाई?
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि सड़क के निर्माण जैसी जनहित की परियोजनाएं भी अब राजनीतिक श्रेय की लड़ाई का अखाड़ा बन चुकी हैं। जब एक ही पार्टी के दो नेता जनता की भलाई को लेकर लड़ रहे हों, तो सोचने वाली बात यह है कि असली मुद्दा सड़क है या सियासी साख?
“बोकारो की यह सड़क अब केवल एक विकास परियोजना नहीं रही, बल्कि भाजपा के दो दिग्गज नेताओं के बीच सियासी प्रतिष्ठा की लड़ाई का कारण बन चुकी है। सवाल यह नहीं है कि सड़क किसने बनवाई, बल्कि यह है कि यह सड़क आखिर कब बनेगी, ताकि जनता को राहत मिले।”