• जर्जर सड़क बनी 9 वर्षीय मासूम की मौत का कारण, एंबुलेंस तक पहुंचने से इनकार, गांव में पसरा मातम
बुलेटिन इंडिया, डेस्क।
जमशेदपुर। देश में सड़कों की बात होती है तो केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाते नहीं थकती। लंबी और चौड़ी सड़कें बनाने में अपना पीठ थपथपाते हुए गर्व से सीना चौड़ी करती है। लेकिन जब खराब व जर्जर सड़क के कारण किसी की जान चली जाए तो इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है।
झारखंड में सड़क विकास के दावों के बीच एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जिसने सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है। पूर्वी सिंहभूम जिले के पटमदा प्रखंड अंतर्गत बोड़ाम थाना क्षेत्र के गौरडीह गांव में जर्जर सड़क के कारण एक 9 वर्षीय मासूम बच्ची की मौत हो गई।
मृत बच्ची की पहचान पूजा महतो के रूप में हुई है। परिजनों के अनुसार, रविवार रात उसे अचानक पेट में तेज दर्द उठा। स्थिति गंभीर होते देख तुरंत अस्पताल ले जाने की कोशिश की गई, लेकिन गांव तक पहुंचने वाला रास्ता इतना जर्जर है कि न तो एंबुलेंस आई, न कोई निजी वाहन। नतीजतन, बच्ची को समय पर इलाज नहीं मिल सका और उसने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया।
⇒ एंबुलेंस ने आने से किया इनकार
पूजा की बिगड़ती हालत देख परिजनों ने एंबुलेंस को कॉल किया, लेकिन खराब सड़क की जानकारी मिलने पर एंबुलेंस कर्मियों ने आने से साफ इनकार कर दिया। यही हाल निजी वाहनों का भी रहा। ग्रामीणों ने खुद किसी तरह उसे अस्पताल पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन खस्ताहाल रास्ते ने उन्हें विवश कर दिया।
⇒ केवल 2.5 किमी सड़क है ठीक, बाकी में जान का खतरा
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, गौरडीह से चिरूडीह-माधवपुर तक 7.5 किलोमीटर लंबी सड़क में से केवल 2.5 किलोमीटर सड़क ही चलने योग्य है। बाकी हिस्सों में कालीकरण की परत पूरी तरह उखड़ चुकी है और सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं। बारिश के मौसम में ये गड्ढे और खतरनाक हो गए हैं, जिससे लोगों को जान जोखिम में डालकर सफर करना पड़ता है।
⇒ ग्रामीणों में गहरा आक्रोश, उठी सड़क निर्माण की मांग
घटना के बाद गांव में शोक का माहौल है और लोगों में प्रशासन के प्रति गहरा आक्रोश देखा जा रहा है। ग्रामीणों ने कहा कि कई बार सड़क निर्माण के लिए आवेदन और शिकायत की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब एक मासूम की जान चली गई, तब भी यदि प्रशासन नहीं जागा, तो मजबूरन उग्र आंदोलन करना पड़ेगा।
⇒ जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर भी सवाल
गांव के लोगों ने सवाल उठाया है कि स्थानीय विधायक और जिला प्रशासन को इस मार्ग की स्थिति की जानकारी होने के बावजूद कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया।
सामाजिक कार्यकर्ता अनिल ठाकुर का कहना है कि यह मौत नहीं, बल्कि ‘प्रशासनिक लापरवाही से हुई हत्या’ है। यदि सड़क ठीक होती, तो पूजा की जान बच सकती थी। यह समय है जब शासन और प्रशासन को केवल आंकड़ों से नहीं, जमीनी हकीकत से भी सरोकार रखना चाहिए।
झारखंड जैसे राज्य में, जहां कई आदिवासी और दूरस्थ इलाके अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, यह घटना सरकार की विकास योजनाओं की जमीनी हकीकत को उजागर करती है। एक मासूम की जान सिर्फ इसलिए चली गई क्योंकि उस तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंच ही नहीं सकी।
अब देखना यह है कि क्या इस दर्दनाक घटना के बाद शासन-प्रशासन जागेगा, या फिर यह मौत भी आंकड़ों में दर्ज एक और “त्रासदी” बनकर रह जाएगी।