बुलेटिन इंडिया।

राम प्रवेश पाल की कलम से ✒️

एक देश में एक ही संस्कृति, भाषा, रंग और धर्म के लोग रहते हों ऐसा कोई जरुरी नहीं है। भारत को विभिन्न संस्कृतियों वाला देश का तगमा मिला हुआ है। लेकिन इस देश के सभी नागरिकों को एक दूसरे की भाषा और संस्कृति का ज्ञान हो, ऐसा नहीं है।

जहाँ तक मैं समझता हूँ ऐसे लोगों की संख्या नगण्य है। इन परिस्थितियों में यह जरुरी हो जाता है कि उस संस्कृति और भाषा के लोग अपनी संस्कृति को दुनिया के अन्य लोगों के साथ शेयर करें। इस बात के लिए उन सभी कवि, लेखकों तथा चित्रकारों का हम आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने अपनी संस्कृति और भाषा को सबके समक्ष लाये।

 

संथाल जनजातियों का नाम और उनके बारे में पढ़ने का मौका भले मिला हो लेकिन उनकी संस्कृति को चित्रों के माध्यम से जानने का मौका बहुत कम मिला है। जिस तरह से हम ताहिती आईलैंड के संस्कृति को जानने के लिए पॉल गोगिन का शुक्रिया अदा करते हैं उसी तरह हम चित्रकार चुना राम हेम्ब्रम का भी आभारी हैं।

उन्होंने बडौदा के MSU से मास्टर डिग्री लेने के बाद वापस अपने जन्मभूमि की ओर लौटे। यह एक बड़ी बात है क्योंकि उनके अंदर बनाने के लिए समकालीन विषय बहुत कुछ था, परन्तु उन्होंने अपनी संस्कृति को भारतीय कला जगत के पटल पर रखना उचित समझा।

 

सिंधू घाटी सभ्यता के समय प्रकृति पूजा के प्रति जितना रूझान वहां के निवासियों का था उतना ही लगाव प्रकृति के प्रति संथाली संस्कृति के लोगों का भी है। उनके चित्र ‘सोहराई’, ‘Affection-7’ तथा ‘Traditional hair dryer’ उनके दैनिक जीवन की झलक को दर्शाता है।

फिलहाल वे Galleria VSB से संबंधित हैं। उनसे जब आप बातें करेगें तो उनमें कहीं न कहीं अपने संथाली समाज को लेकर एक झुकाव देखने को मिलेगा। उस संस्कृति के व्यापक विस्तार के लिए वे वचनबद्ध हैं। उन्हें पता हैं चित्र और मूर्तियां सदीयों तक अपना प्रभाव छोड़ती हैं। अपने चित्रों में झारखंड की भूमि और अपने परिवेश को ही भूदृश्य तथा समाज में प्रयुक्त होने वाले वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। आप को इसे देखते समय उनके पहनावे पर विशेष ध्यान देना होगा।

 (राम प्रवेश पाल, चित्रकार व कला लेखक हैं।)

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