• अनुच्छेद 15 में स्पष्ट है कि राज्य किसी के साथ भी धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता – महासभा
बुलेटिन इंडिया।
– विशद कुमार ✒️
“भारत अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है तो बेशक इस देश के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा। यह स्वतंत्रता, बराबरी और बंधुत्व के लिए एक ख़तरा है। इस आधार पर लोकतंत्र के अनुपयुक्त है।” बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर का 1940 में दिए गए बयान उनकी जयंती पर बरबस याद आ जाता जब वर्तमान फासीवादी सत्ता आम लोगों के दिमाग में हिन्दू राष्ट्र की शिगूफा छोड़कर धर्म का जहर घोल रही हो।
संविधान के अनुच्छेद 26 के अनुसार हर धार्मिक संप्रदाय को अपने धार्मिक मामलों, संस्थानों और संपत्ति का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता है। अनुच्छेद 25 सबको अपना धर्म मानने, मनाने और प्रचार करने का अधिकार देता है। वही अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष देश के हर व्यक्ति को समानता और सुरक्षा की गारंटी देता है। अनुच्छेद 15 स्पष्ट कहता है कि राज्य किसी के साथ भी धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। ऐसे में वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 इन सब धाराओं का खुला उल्लंघन है। साथ ही, इसके कई प्रावधान सर्वोच्च न्यायलय के अनेक निर्णयों का भी उल्लंघन है।
इन तमाम प्रावधानों पर झारखंड जनाधिकार महासभा ने बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर कहा है कि भारत सरकार द्वारा हाल ही में पारित वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 का महासभा कड़ा विरोध करती है। यह कानून, जो वक्फ अधिनियम, 1995 में व्यापक बदलाव लाता है, न केवल मुसलमानों के धार्मिक स्वायत्तता और सामुदायिक अधिकारों पर कुठाराघात करता है, बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों और सामाजिक सौहार्द को भी कमजोर करता है।
गौर करें, कि इन धाराओं के तहत ही वक्फ़ कानून के साथ-साथ अनेक राज्यों में विभिन्न प्रकार के हिन्दू धर्म दान अधिनियम हैं जिनके तहत हिन्दू धर्म के अनुसार सिर्फ़ हंदुओं द्वारा सम्बंधित संपत्ति (मंदिर आदि) का प्रबंधन होता है।
इस्लाम धर्म के अनुसार किसी भी मुसलमान को अपने संपत्ति को इस्लाम द्वारा धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए वक्फ़ (अल्लाह के नाम समर्पित कर देने) करने का अधिकार है। ऐसे सम्पतियों के प्रबंधन और रख-रखाव के लिए वक्फ़ कानून आज़ाद देश में 1954 में पहली बार बना था जिसके तहत तभी से वक्फ़ बोर्ड व केंद्रीय कौंसिल के गठन का प्रावधान रहा है। वर्तमान में वक्फ़ के तहत ज़मीन पर या इससे जुड़े आमदनी से देश के अनगिनत मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसे, दरगाह एवं अन्य धर्मार्थ संस्था जैसे अस्पताल, यतीमखाने, विश्वविद्यालय आदि बने हुए हैं। 1954 के बाद कई बार इस कानून में संशोधन किया गया लेकिन संवैधानिक धाराओं के अनुसार वक्फ़ के मूल धार्मिक व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं किया गया।
पूर्व के वक्फ़ कानून में “उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ़” प्रावधान था. इसके तहत ऐसे अनेक मस्जिद, कब्रिस्तान आदि जिनका दान सम्बंधित दस्तावेज़ नहीं हैं लेकिन लम्बे समय से वे इस उपयोग में हैं, उन्हें भी वक्फ़ संपत्ति मानने का प्रावधान था। लेकिन नए संशोधन कानून में इसे हटा दिया गया है। गौर करने की बात है कि विभिन्न हिन्दू धर्म दान अधिनियम में मंदिरों, मठों आदि के लिए यह प्रावधान है। साथ ही, कोई संपत्ति वक्फ़ की है या नहीं, इसके दस्तावेजों की जांच, सर्वेक्षण करने और निर्णय लेने के अधिकार स्थानीय प्रशासन को दे दिया गया है। एक और बड़ा बदलाव किया गया है कि अगर कोई वक्फ़ संपत्ति पर अतिक्रमण हुआ है और विवाद है, तो अब अतिक्रमण करने वाला व्यक्ति मालिकाना हक़ का दावा कर सकता है जिसका फैसला स्थानीय प्रशासन करेगा। इन तीनों प्रावधानों को अगर भाजपा-आरएसएस की हिंदुत्व राजनीति के परिप्रेक्ष में देखा जाये, तो खतरा साफ़ है। अब किसी भी वक्फ़ संपत्ति पर विवाद पैदा करके उसे हथियाना आसान हो जायेग। साथ ही, जिस प्रकार हाल के सालो में ‘प्लेसेस ऑफ़ वोर्शिप एक्ट’ का उल्लंघन कर मस्जिदों के नीचे मंदिर खोजने की होड़ लग गयी है, वक़्फ़ क़ानून के इन नए प्रावधानों के ज़रिए अब किसी भी मस्जिद को विवादित कर देना आसान हो जायेगा।
इस कानून में संवैधानिक अनुच्छेद 26 व 25 अंतर्गत धार्मिक स्वायत्ता के बुनियाद पर हस्तक्षेप करके यह भी जोड़ा गया है कि कौन वक्फ़ कर पाएंगे (कम से कम 5 साल से इस्लाम मानने वाले आदि) और कितना कर पाएंगे. जब कि, किसी भी दूसरे धर्म में, धार्मिक दान सम्बंधित ऐसे कोई नियम नहीं बनाये गए हैं। साथ ही, वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 में केंद्रीय वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में मुस्लमान सदस्यों की जगह बड़ी संख्या में गैर-मुस्लमान सदस्यों को शामिल करने के प्रावधान को जोड़ा गया है। जबकि अन्य सभी धर्मों के प्रबंधन संस्थानों में अन्य धर्म के सदस्य होने का प्रावधान नहीं है. फिर यह कुटिलता पूर्ण प्रावधान सिर्फ़ मुसलमानों से सम्बंधित संस्थान में क्यों? यह मुसलमान समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता का उल्लंघन है।
संविधान की धाराओं को गंभीर रूप से उल्लंघन करने वाले प्रावधानों के यह केवल चंद उदहारण है। इसे लागू करने से पहले मोदी सरकार ने अपने तानाशाही तरीके से न मुसलमान नागरिकों की राय सुनी और न विपक्षी दलों की बात। इसके ड्राफ्ट पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की सिफारिशों में भी अनेक महत्वपूर्ण आपत्तियों को शामिल नहीं किया गया, जिससे इसकी वैधता पर सवाल उठते हैं।
इस कानून सम्बंधित केंद्र सरकार झूठ भी फैला रही है। उदहारण के लिए, सरकार बोल रही है कि इस संशोधन कानून से वक्फ़ बोर्ड व कौंसिल में महिलाओं की भागीदारी का प्रावधान को जोड़ा गया है जबकि यह 2013 के संशोधन में ही था। यह भी बोला जा रहा है कि इस कानून से पसमांदा समाज को भागीदारी मिलेगी। तथ्य यह है कि देश के कई वक्फ़ बोर्ड में पहले से ही पसमांदा समाज के प्रतिनिधि शामिल हैं। यह भी हास्यास्पद है कि एक ओर सरकार मंदिरों के बोर्ड व प्रबंधन में दलित व बहुजन समाज की भागीदारी पर चुप्पी साधी रहती है और दूसरी ओर अपने को पसमांदा समाज का हितैषी दर्शाने की कोशिश कर रही है।
हिंदुस्तान को हिन्दू राष्ट्र बनाने का आरएसएस-भाजपा और मोदी सरकार का एजेंडा सबके सामने है। 2014 के बाद मुसलमानों के नागरिक व संवैधानिक अधिकारों पर लगातार प्रहार किया जा रहा है सरकारी तंत्र के सहयोग से उनके साथ हिंसा, लिंचिंग, झूठे मुक़दमे, सम्पत्तियों को बुलडोजेर से ध्वस्त करना और झूठे मुठभेड़ आदि का नया इतिहास बन गया है। मुसलमानों को खाने, पहनावे, रोज़गार, पर्व, धार्मिक व्यवस्थाएं आदि में भाजपा सरकार के संरक्षण में हिंदुत्व संगठनों द्वारा विभिन्न तरीक़ों से परेशान किया जा रहा है. वंचित मुसलमानों की पढाई के लिए जीवनरेखा सामान छात्रवृत्ति को ख़तम किया जा रहा है। केंद्र सरकार मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की ओर कोई कसर नहीं छोड़ रही है। संविधान विरोधी नागरिकता संशोधन कानून एक उदहारण है। इसी क्रम में वक्फ़ संशोधन कानून 2025 भी एक कड़ी है जिसमें प्रहार मुसलामानों के संपत्ति, धार्मिक स्थलों, विद्यालयों आदि पर किया जायेगा। यह भी प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार जानबूझ कर देश व समाज का सांप्रदायिक माहौल ख़राब करना चाहती है।
झारखंड जनाधिकार महासभा का मानना है कि वक्फ़ संशोधन कानून 2025 को रद्द किया जाना चाहिए और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से संबंधित किसी भी बदलाव के लिए समुदाय के साथ व्यापक और पारदर्शी परामर्श करके ही आगे बढ़ना चाहिए। हम सभी नागरिकों, सामाजिक संगठनों और धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों से अपील करते हैं कि वे इस कानून के खिलाफ एकजुट हों और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक संघर्ष करें। हम झारखंड सरकार से मांग करते हैं कि विधान सभा में वक्फ़ संशोधन कानून 2025 के विरुद्ध संकल्प पारित करें।
(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)