बुलेटिन इंडिया।

विशद कुमार ✒️

हाल ही में राधा गोविंद विश्वविद्यालय के विधि संकाय में एक शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए शोधकर्ता डॉ. सचिन इंदीवर ने एक बातचीत के दौरान कहा कि त्वरित न्याय के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डालसा), झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकार (झालसा) और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) जैसी वैधानिक संस्थाओं का महत्वपूर्ण स्थान है, फिर भी आज के समय के हिसाब से इन्हें तकनीकी रूप से और अधिक सक्षम बनाने की जरूरत है।

बातचीत के दौरान डॉ. सचिन ने आगे कहा कि इन संस्थाओं को समाज के अंतिम और वंचित लोगों तक न्याय पहुंचाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। इसलिए इनसे जुड़े लोगों को समाज के प्रति संवेदनशील और निस्वार्थ मानव सेवा से प्रेरित होने की जरूरत है।

 

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) का गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करने और विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों का आयोजन करने के लिए किया गया है।

झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (झालसा) का मकसद, समाज के वंचित वर्ग को न्याय दिलाना और निःशुल्क कानूनी सेवाएं मुहैया कराना है। इसका गठन, राज्य सरकार करती है, जो राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित है।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डालसा) के अंतर्गत समाज के कमजोर वर्ग को निःशुल्क विधिक सेवायें प्रदान करना होता है।

 

बताते चलें कि डॉ. सचिन इंदीवर ने हाल ही में राधा गोविंद विश्वविद्यालय रामगढ़ (झारखंड) के विधि संकाय में एक शोध पत्र प्रस्तुत किया। शोध पत्र का विषय था – “जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाइड- द जूरिप्रूडेंस एंड इंपीरीक ऑफ स्पीडी ट्रायल (विथ स्पेशल रेफरेंस टू स्टेट ऑफ़ झारखंड)”

 

उन्होंने बताया कि शोध के दौरान पाया गया कि झारखंड में करीब 4.50 लाख मामले लंबित हैं। हर कोर्ट पर केस का बोझ बढ़ा है।

उन्होंने अपने शोध पत्र में यह भी बताया कि कोर्ट में लंबित मामलों को कैसे कम किया जा सकता है। त्वरित न्याय के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। अपने शोध पत्र के माध्यम से डॉ. सचिन ने न्यायिक मामलों में तेजी से कमी लाने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण सुझाव दिए :-

 

■ सालों साल चल रहे लंबित मामलों को कम करने के लिए उचित संख्या में न्यायिक पदाधिकारियों का चयन की आवश्यकता है।

 

■ अधिक से अधिक कोर्ट रूम खोलने से भी अतिरिक्त वादों में कमी आ सकती है।

 

■ तीन शिफ्ट में अर्थात (सुबह, दोपहर और शाम ) शिफ्ट वाइज कोर्ट की कार्रवाई होने से भी कोर्ट का बोझ कम हो सकता है।

 

■ थाने या न्यायालय में मामले का रजिस्टर होने से लेकर इन्वेस्टिगेशन, विचारण एवं सुनवाई तक एक उचित समय सीमा निर्धारण करने की जरूरत है।

 

■ गवाहों को निर्धारित समय पर आने की प्रेरणा दी जाए ताकि विचारण समय पर संपूर्ण हो।

 

■ झूठा बयान दर्ज करवाने वाले गवाहों पर न्यायिक कार्रवाई हो।

 

■ वादों के झूठे एवं बोगस साबित होने पर तमाम संलिप्त लोगों पर कॉस्ट फिक्सेशन के साथ उचित न्यायिक कार्रवाई होनी चाहिए।

 

■ माननीय न्यायिक पदाधिकारी, अधिवक्ता गण, मामले से जुड़े हुए पुलिस पदाधिकारी एवं इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर को फॉरेंसिक साइंस एवं तकनीकी जानकारी किसी एक्सपर्ट के द्वारा प्रॉपर ट्रेनिंग देकर तकनीकी रूप से दक्ष बनाने की जरूरत है। इसकी शुरुआत विधि के छात्रों एवं अध्यापकों से की जाए तो परिणाम और भी बेहतर हो सकता है।

 

■ समय-समय पर नागरिकों के बीच न्यायिक जागरूकता अभियान चलाने की भी जरूरत है।

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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